स्वास्थ्य/चिकित्सा: भारतीय युवाओं में बढ़ रहे हैं ब्लड कैंसर के मामले विशेषज्ञ

भारतीय युवाओं में बढ़ रहे हैं ब्लड कैंसर के मामले  विशेषज्ञ
डॉक्टरों ने कहा कि भारत में 30 से 40 वर्ष की आयु के युवा वयस्कों में क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल) काफी बढ़ रहा है।

नई दिल्ली, 28 मई (आईएएनएस)। डॉक्टरों ने कहा कि भारत में 30 से 40 वर्ष की आयु के युवा वयस्कों में क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल) काफी बढ़ रहा है।

डॉक्टरों ने बताया कि क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल) एक दुर्लभ बीमारी है। लेकिन इसका इलाज संभव है। यह रक्त कैंसर है।

सीएमएल बोन मैरो को प्रभावित करती है। इसमें सामान्य रूप से न्यूट्रोफिल, बेसोफिल, इयोसिनोफिल और मोनोसाइट्स जैसी श्वेत रक्त कोशिकाओं में विकसित होने वाली कोशिकाएं कैंसरयुक्त हो जाती हैं।

वैश्विक स्तर पर सीएमएल बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करता है। एक अनुमान के मुताबिक यह 1.2 से 15 लाख व्यक्तियों को प्रभावित करता है।

यह बीमारी इतने ज्यादा तौर पर फैलने के बावजूद सीएमएल ल्यूकेमिया के अन्य रूपों की तुलना में अपेक्षाकृत दुर्लभ है। इसमें ल्यूकेमिया के सभी मामलों का लगभग 15 प्रतिशत शामिल है।

जर्नल लांसेट में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है कि यह बीमारी बहुत कम उम्र के व्यक्तियों को अपना शिकार बना रही है। भारत में अधिकांश रोगियों में यह 30 से 40 वर्ष की आयु के बीच देखने को मिला।

इसकी तुलना में यह पश्चिमी देशों में 64 वर्ष की आयु में देखने को मिला।

बेंगलुरु के एचसीजी कॉम्प्रिहेंसिव कैंसर केयर हॉस्पिटल के वरिष्ठ हेमेटोलॉजिस्ट और हेमाटो-ऑन्कोलॉजिस्ट के.एस. नटराज ने आईएएनएस को बताया, ''मैं देखता हूं कि हर महीने लगभग 5-10 नए रोगियों में सीएमएल का पता चलता है और वहीं 10-15 अतिरिक्त रोगी फॉलो-अप के लिए आते हैं।''

उन्होंने कहा, "मरीजों की संख्या में इसलिए भी वृद्धि हो रही है, क्योंकि लोग इस बीमारी को लेकर सजग नहीं हैं। जब लोग नियमित रूप से सामान्य जांच के लिए जाते हैं और डॉक्टर परीक्षण की सलाह देते हैं, तब संदिग्ध रूप से उच्च डब्ल्यूबीसी की संख्या का पता चलता है।''

यदि प्रारंभिक अवस्था में इसकी पहचान और इसका उपचार किया जाए तो सीएमएल काफी हद तक ठीक हो सकता है।

सीएमएल में सामान्य तौर पर पसीना आना, वजन कम होना, बुखार, हड्डियों में दर्द और प्लीहा का बढ़ना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

एम्स नई दिल्ली में हेमेटोलॉजी के प्रोफेसर तूलिका सेठ ने आईएएनएस को बताया, "क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया का इलाज संभव है। हालांकि इस बीमारी से लड़ने के लिए बेहद नाजुक संतुलन अपनाने की आवश्यकता होती है। इस बीमारी से उभरने के लिए लगातार दवा का सेवन और नियमित जांच सबसे महत्वपूर्ण बात है। निगरानी और व्यक्तिगत उपचार रणनीतियों के साथ सीएमएल से उभरा जा सकता है।"

उन्होंने कहा, "सीएमएल के इलाज के दौरान प्रत्येक चरण में अद्वितीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लगातार निगरानी को प्राथमिकता देने के साथ उपचार का पालन करते हुए चिकित्सा में प्रगति को अपनाना महत्वपूर्ण है।"

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   28 May 2024 7:04 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story