समाज: कैसे हुई थी ‘अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस’ की शुरुआत? जानें इससे जुड़ा इतिहास

नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)। दुनिया भर में लाखों विधवाएं गरीबी, सामाजिक बहिष्कार, हिंसा और भेदभाव का सामना करती हैं। ऐसे में विधवाओं के अधिकारों, सम्मान और सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस’ की शुरुआत की गई, ताकि उनको मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। ‘अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस’ एक वार्षिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक आह्वान है कि हम विधवाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें और उनके लिए एक समावेशी, सुरक्षित और सम्मानजनक समाज का निर्माण करें। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि विधवाएं भी हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा हैं और उन्हें बराबरी का हक मिलना चाहिए।
‘अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस’ हर साल 23 जून को मनाया जाता है। यह विश्व भर में विधवा महिलाओं की आवाज को बुलंद करने और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह दिन विधवाओं के अधिकारों, सम्मान और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। ‘अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस’ हमें इन महिलाओं के संघर्षों को समझने और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए ठोस कदम उठाने की प्रेरणा देता है, ताकि वे गरिमापूर्ण और स्वतंत्र जीवन जी सकें।
‘अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस’ की शुरुआत साल 2005 में ब्रिटेन स्थित लूंबा फाउंडेशन द्वारा की गई थी। इसकी स्थापना लॉर्ड राज लूंबा ने की, जिनकी मां पुष्पावती लूंबा 23 जून 1954 को विधवा हुई थीं। उनकी मां को विधवापन के बाद सामाजिक और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसने इस दिवस की नींव रखने की प्रेरणा दी। हालांकि, लूंबा फाउंडेशन ने संयुक्त राष्ट्र की मान्यता के लिए पांच साल का एक वैश्विक अभियान चलाया। 21 दिसंबर 2010 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 जून को औपचारिक रूप से ‘अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस’ के रूप में मान्यता दी। साल 2011 से यह दिवस वैश्विक स्तर पर मनाया जा रहा है।
इसका उद्देश्य विधवाओं की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है, साथ ही सामाजिक कलंक, गरीबी, हिंसा और भेदभाव जैसी समस्याओं को संबोधित कर विधवाओं को आर्थिक, सामाजिक और कानूनी रूप से सशक्त बनाना है ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 25.8 करोड़ विधवाएं हैं, जिनमें से कम से कम 13.6 करोड़ बाल विधवाएं हैं। इसके अलावा, कई विधवाओं को शारीरिक या यौन शोषण जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। साथ ही कई देशों में विधवाओं को संपत्ति, जमीन या उनके बच्चों के अधिकारों से वंचित भी कर दिया जाता है, जिस वजह से उनकी स्थिति और भी कमजोर हो जाती है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, 45 वर्ष या उससे अधिक आयु की 3.647 करोड़ विधवा महिलाएं थीं, जो इस आयु वर्ग की कुल महिलाओं की संख्या का 29 प्रतिशत था।
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Created On :   22 Jun 2025 7:59 PM IST