मैनपुरी में महिला प्रत्याशी को हर बार मिली बुरी हार, क्या पारिवारिक सीट से अपनी साख बचा पाएंगी डिंपल यादव या आड़े आएगा सीट का पुराना चुनावी इतिहास?

Will Dimple be able to break this myth in Mainpuri by-election? Along with saving heritage, reputation is also at stake
मैनपुरी में महिला प्रत्याशी को हर बार मिली बुरी हार, क्या पारिवारिक सीट से अपनी साख बचा पाएंगी डिंपल यादव या आड़े आएगा सीट का पुराना चुनावी इतिहास?
मैनपुरी उपचुनाव- 2022 मैनपुरी में महिला प्रत्याशी को हर बार मिली बुरी हार, क्या पारिवारिक सीट से अपनी साख बचा पाएंगी डिंपल यादव या आड़े आएगा सीट का पुराना चुनावी इतिहास?

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। समाजवादी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट पर आगामी 5 दिसंबर को उपचुनाव होने वाला है। यह सीट सैफई परिवार के लिए प्रतिष्ठा बनी हुई है। इस बार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पत्नी डिंपल यादव को यहां से उम्मीदवार बनाया है। मुलायम सिंह यादव का मैनपुरी गढ़ रहा है, यहां पर हमेशा से सपा ही बाजी मारती रही है। लेकिन इस बार बीजेपी पूरी ताकत झोंक रही है। क्योंकि इसके पहले सपा का गढ़ माना जाने वाला रामपुर व आजमगढ़ उपचुनाव में बीजेपी बड़ी जीत दर्ज कर चुकी है। जिससे उसका मनोबल हाई है। हालांकि, सपा उम्मीदवार के सामने एक मिथक तोड़ने की सबसे बड़ी चुनौती भी है। इस सीट से अभी तक कोई महिला प्रत्याशी नहीं जीत दर्ज कर पाई है। 

क्या है मिथक?

इस मैनपुरी लोकसभा सीट को लेकर बताया जाता है कि 71 साल के बीच किसी भी महिला प्रत्याशी ने जीत नहीं दर्ज की है। 1951 में पहली बार बादशाह गुप्ता ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर दिल्ली पहुंचे। इसके बाद से अब तक 19 चुनाव हुए और कोई भी महिला विधायक लोकसभा नहीं पहुंच पाई। इसको लेकर एक मिथक है, जो मैनपुरी उपचुनाव से पहले चर्चा में है। सपा ने इस बार डिंपल को चुनाव में जरूर उतारा है लेकिन इस मिथक को तोड़ने की चुनौती बनी हुई है। इसी वजह से सैफई परिवार ने चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोंक दी है।

मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के लिए 17 लाख से अधिक मतदाता हैं। इनमें से 8 लाख से अधिक महिला वोटर हैं।  फिर भी आधी आबादी से किसी को एक बार भी लोकसभा सदस्य बनने का मौका नहीं मिला। ये हालात तब दिख रहे हैं, जब तमाम राजनीतिक दल महिलाओं को लेकर लंबी-लंबी बाते करते हैं। यहां तक कि राजनीतिक आरक्षण की वकालत करते हैं। जहां तक महिलाओं को उम्मीदवार बनाने की बात है तो बसपा ने संघमित्रा मौर्य को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया था लेकिन उनकी बुरी तरह हार हुई थी। हालांकि, बीजेपी ने फिर उन्हें बदांयू से जिताकर दिल्ली भेज दिया। 

बीजेपी नेत्री तृप्ति शाक्य भी नाकाम रहीं

भाजपा ने साल 2009 में तृप्ति शाक्य को प्रत्याशी बनाया था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने 2004 में सुमन चौहान को उतारा था लेकिन सुमन भी दिल्ली नहीं पहुंच पाईं थीं। मुलायम सिंह के गढ़ में सपा ने 33 साल के सियासी सफर में पहली बार महिला प्रत्याशी पर दांव लगाया है। अगर यहां से सपा चुनाव में बाजी मारती है तो ये पहली बार ऐसा होगा जब डिंपल यहां से दिल्ली जाएंगी। वैसे डिंपल कन्नौज से सांसद रह चुकी हैं। यानी कि दिल्ली का सफर उनके लिए पहली बार नहीं रहेगा। 

महिलाओं को नहीं मिला मौका

अगर मैनपुरी लोकसभा की बात करें तो 1951 में हुए पहले लोकसभा के बाद से अभी तक महिलाओं को संसद के दहलीज पर जाने का अवसर नहीं मिला है। लेकिन डिंपल इस बार महिलाओं के इस मिथक को तोड़ने के लिए चुनाव में खूब पसीना बहा रही हैं। मुलायम सिंह के इस अभेद्य किले में बीजेपी सेंधमारी करने में जुटी है। जो कि डिंपल के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। 


 

Created On :   23 Nov 2022 11:49 AM GMT

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