भाजपा को झटका, कांग्रेस-राकांपा को सबक

Blow to BJP, lesson to Congress-NCP
भाजपा को झटका, कांग्रेस-राकांपा को सबक
विधान परिषद शिक्षक चुनाव समीक्षा भाजपा को झटका, कांग्रेस-राकांपा को सबक

रघुनाथसिंह लोधी , नागपुर । विधान परिषद की शिक्षक निर्वाचन सीट नागपुर के चुनाव में भाजपा को झटका लगा है। भाजपा समर्थित उम्मीदवार जीत की हैट्रिक नहीं कर पाए। 2010 के चुनाव में नागो गाणार की पहली जीत को नितीन गडकरी की रणनीतिक कुशलता का करिश्मा कहा गया। गडकरी तब भाजपा के अध्यक्ष थे। गाणार की सादगी और चेहरे पर भोलेपन को देख यह तक कहा जा रहा था कि गडकरी चाहें, तो मिट्टी में भी जान भर दें, लेकिन गाणार की तुलना में स्वयं को अधिक योग्य मानने वालों की भाजपा में कमी नहीं थी। कसक यह कि भाजपा में सक्षम कार्यकर्ता नहीं हैं, जो शिक्षक परिषद के सेवानिवृत्त गुरुजी पर ही दांव लगाए जा रहे हैं।

गाणार ने सरकार पर तंज कसे थे : 2016 में गाणार दोबारा जीते, लेकिन उस जीत को हिचकोले खाती जीत कहा गया। गाणार, जीत के लिए मतों का कोटा पूरा नहीं कर पाए थे। इस बार गाणार को लेकर भाजपा खुलकर बोलने की स्थिति में नहीं थी। देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री कार्यकाल में गाणार ने सरकार पर तंज कसे थे। यहां तक कि विधान परिषद की सदस्यता छोड़ने की पेशकश करने लगे थे। चुनाव के पहले विधायक मोहन मते को गाणार का चुनाव प्रभारी नियुक्त किए जाने तक भाजपा के नेता ही नहीं समझ पा रहे थे कि गाणार को समर्थन मिलेगा भी या नहीं। फडणवीस के मार्गदर्शन में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने विभागीय कार्यालय में पदाधिकारियों की बैठक ली, तो साफ संकेत मिलने लगा था कि गाणार को लेकर पार्टी में क्या चल रहा है।

आघाड़ी के लिए सबक
आघाड़ी के लिए सबक है कि कोई नेता गलतफहमी में न रहे। मतदाता चाहें, तो नेता के बिना भी कार्यकर्ता चुनाव जीत सकते हैं। इस चुनाव में भी कांग्रेस की गुटबाजी दूर नहीं हुई थी। कांग्रेस के कई नेता तो चुनाव छोड़ राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होने कश्मीर चले गए थे। यहां कुछ नेता रहे भी, तो उनमें मतभेद दिख रहा था। सुधाकर अडबाले ने सामान्य शिक्षक कार्यकर्ता के तौर पर मतदाताओं का भरोसा जीत लिया। राकांपा व उद्धव ठाकरे की शिवसेना एक-एक बैठक तक सीमित रही। शिवसेना को उम्मीदवार वापस लेना पड़ा था। उम्मीदवार तय करने में राकांपा की पसंद शामिल नहीं थी। फिर भी आघाड़ी आगे रही। मनपा चुनाव में ये तीनों दल सबक लेकर नई रणनीति पर काम करें तो, भाजपा को चुनौती दे सकते हैं। बसपा व वंचित आघाड़ी समान राजनीतिक दल केवल समाज, घटक की बात करके चुनाव में सफल नहीं हो पाएंगे। इस चुनाव में इन दोनों के उम्मीदवार चंद मतों तक ही सीमित रहे।
 

Created On :   3 Feb 2023 7:24 AM GMT

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