हीमोफीलिया के 450 मरीजों में फैक्टर 8 और 9 का अभाव

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नागपुर हीमोफीलिया के 450 मरीजों में फैक्टर 8 और 9 का अभाव

डिजिटल डेस्क, नागपुर। अक्सर कहा जाता है कि शरीर में खून का दौड़ना जरूरी होता है। हर बार यह बात लागू नहीं होती है। शरीर में ऐसे तत्वों का होना भी जरूरी होता है, जो समय-समय पर रक्तस्त्राव को रोक सके। शरीर में फैक्टर 8 और 9 के न होने पर यदि रक्तस्त्राव हुआ तो वह रुकता नहीं है। हीमोफीलिया के मरीजों को यही मर्ज होता है। उनके शरीर में यह फैक्टर नहीं होते हैं। इसलिए उन्हें इन फैक्टरों के टीके लेने पड़ते हैं। जिले में हीमोफीलिया के 509 पंजीकृत मरीज हैं। इनमें मध्य प्रदेश के मरीजों का भी समावेश है। अकेले नागपुर जिले में ही हीमोफीलिया के 450 मरीज है। इस बीमारी का स्थायी उपचार नहीं होने से मरीजों को फैक्टर 8 व 9 लेकर जीना पड़ता है। 

हीमोफीलिया को अधिरक्तस्राव कहा जाता है। यह ब्लीडिंग डिसऑर्डर है। इस बीमारी के पीड़ितों के शरीर में खून के थक्के नहीं जम पाते है। सामान्य व्यक्ति को चोट लगने या सर्जरी के बाद खून का बहाव रुक जाता है। लेकिन हीमोफीलिया के मरीजों में खून का बहाव रोकनेवाले तत्व नहीं होते। हीमोफीलिया के मरीजों को छोटी-मोटी चोट लगनेपर भी उसकी ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। शरीर के बाहर ही नहीं, बल्कि शरीर के भीतर भी ब्लीडिंग होती है। घुटने, एड़ियां व कोहनियाें के जोड़ाें से रक्त बहता है। शरीर के भीतर ब्लीडिंग होने से जान का खतरा भी पैदा होता है। हीमोफीलिया फेडरेशन इंडिया के अंतर्गत कार्यरत हीमाेफीलिया सोसायटी नागपुर चैप्टर की सचिव डॉ. अंजु कडू ने बताया कि पिछले साल शरीर के भीतर ब्लीडिंग के चलते 3 लोगों की मृत्यु हुई है। कई बार हीमोफीलिया से मृत्यु होने पर जानकारी सामने नहीं आती है। इसलिए निश्चित संख्या का पता नहीं चल पाता। सोसायटी के पा 509 पंजीकृत मरीज है। उनमें से करीब 60 मरीज मध्य प्रदेश के हैं। 450 मरीज नागपुर जिले के हैं। इनके अलावा अनुमान व्यक्त किया गया कि 100 से अधिक मरीज पंजीकृत नहीं है, लेकिन वह उपचार ले रहे हैं। 

अचानक ब्लीडिंग होना भी लक्षण : हीमोफीलिया एक अनुवांशिक बीमारी है। ब्लीडिंग अधिक होना या किसी भी कारण से अचानक ब्लीडिंग होना हीमोफीलिया के लक्षण हैं। कटने से, चोट लगने से, सर्जरी में, वैक्सीनेशन से, बिना किसी वजह से नाक से या शरीर के अन्य कुछ अंगों से खून बहना हीमोफीलिया पीड़ितों के लक्षणों में शुमार होता है। गिरने पर, दुर्घटना के दौरान मस्तिष्क में ब्लीडिंग होन पर जान पर बन आती है। इसके अलावा भी अनेक लक्षण पाए जाते हैं। इसलिए इन मरीजों का रक्तस्त्राव रोकने के लिए फैक्टर 8 व 9 की आवश्यकता होती है। यह फैक्टर टीके के माध्यम से दिया जाता है। इससे उनके शरीर में खून के थक्के जमाने वाले तत्व तैयार होते हैं। इन फैक्टरों के कारण रक्त में मौजूद प्लेटलेटस् से मिलकर गाढ़ा हो जाता है। इससे रक्त का बहाव रुक जाता है। हीमोफीलिया दो तरह का होता है। हीमोफीलिया "ए' में फैक्टर 8 की और हीमोफीलिया "बी' में फैक्टर 9 की कमी होती है। 

डागा अस्पताल में है सुविधा
डागा शासकीय स्मृति अस्पताल में हीमोफीलिया केंद्र बनाया गया है। सरकार की तरफ से यहां मरीजों के लिए नि:शुल्क फैक्टर उपलब्ध कराया जाता है। यहां ऑन डिमांड फैक्टर दिया जाता है। केंद्र प्रमुख डॉ. संजय देशमुख ने बताया कि हीमोफीलिया के तीन प्रकारों में ए, बी व इन्हेबिटर्स पॉजिटिव का समावेश होता है। मरीजों में ए प्रकार के मरीजों की संख्या 370, बी प्रकार के मरीजों की संख्या 40 व इन्हेबिटर्स पॉजिटिव की संख्या 40 है। ए प्रकार के मरीज को फैक्टर 8, बी प्रकार के मरीजों को फैक्टर 9 व इन्हेबिटर्स पॉजिटिव को फैक्टर 7 व फीबा दिया जाता है। केंद्र में यह सेवा पूरी तरह नि:शुल्क उपलब्ध है। यह फैक्टर्स वजन के हिसाब से देने पड़ते हैं। यदि मरीज का वजन 50 किलो हो तो उसे निजी अस्पतालों में एक विजिट में फैक्टर 8 के लिए 10 हजार, फैक्टर 9 के लिए 20 हजार व फैक्टर 7 व फीबा के लिए 2 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं। चार साल पहले ये केंद्र शुरू किया गया था। सिविल सर्जन डॉ. निवृत्ति राठोड व डागा की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सीमा पारवेकर की निगरानी में इस केंद्र में हीमोफीलिया मरीजों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है।
 

Created On :   19 April 2023 9:06 AM GMT

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