5 करोड़ की बजाय अब ठेकेदार को देने पड़ेंगे 300 करोड़ रुपए

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सरकारी खजाने को लगी बड़ी चपत  5 करोड़ की बजाय अब ठेकेदार को देने पड़ेंगे 300 करोड़ रुपए

डिजिटल डेस्क, मुंबई। वर्धा जिले के जाम से चंद्रपुर जिले के वरोरा के बीच 1998 में बनी सड़क के लिए ठेकेदार को 5 करोड़ 71 लाख रुपए का भुगतान करने काआर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) के फैसले को मानने के बजाय उसे विभिन्न अदालतों में चुनौती देने का फैसला राज्य सरकार को बहुत महंगा पड़ गया। निचली अदालते से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक सभी अदालतों ने मध्यस्थ के फैसले को सही माना जिसके चलते ब्याज के साथ आखिरकार सड़क बनाने वाली कंपनी को 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान करने पड़ेंगे। कोई रास्त न बचा होने के चलते मंत्रिमंडल ने भी 13 दिसंबर 2022 को ठेकेदार खरे एंड तारकुंडे इंफ्रास्ट्रक्चर को पैसों का भुगतान करने को मंजूरी दे दी। 
अब उन अधिकारियों पर गाज गिर सकती है जिनकी लापरवाही के चलते सरकार को यह चपत लगी है। खासकर ठेकेदार के साथ सड़क बनाने के लिए अनुबंध की शर्तों पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसी के चलते इतनी बड़ी रकम चुकानी पड़ रही है। ठेकेदार को कुल 300 करोड़ 4 लाख 62 हजार रुपए भुगतान किया जाएगा। अब सरकार ने इस पूरे मामले के साथ ठेके में शामिल शर्तों की भी जांच करने का फैसला किया है। निर्माण, इस्तेमाल और हस्तांतरण (बीओटी) के तहत खरे एंड तारकुंडे इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी को साल 1997 में पुलों की श्रृंखला बनाने का काम सौंपा गया था। 226 करोड़ रुपए का यह कामठेकेदार ने अक्टूबर 1998 में पूरा कर लिए और कालावधि खत्म होने के बाद टोल वसूली बंद कर इसे सार्वजनिक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को सौंप दिया। इसके बाद असंतुष्ट ठेकेदार ने मध्यस्थ की मांग की। सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता आरएच तडवी को एकल मध्यस्थ के रुप में नियुक्त किया गया। उन्होंने  सुनवाई के बाद 4 मार्च 2004 को आदेश दिया कि 5 करोड़ 71 लाख रुपए का बकाया 25 फीसदी प्रति महीने की चक्रवृद्धि व्याज जोड़कर ठेकेदार को दिया जाए। इसके बाद सरकार ने जिला व सत्र न्यायालय में आदेश को चुनौती दी लेकिन वहां भी फैसला ठेकेदार के पक्ष में गया हालांकि ब्याज की रकम घटाकर 18 फीसदी कर दी गई। सरकार ने इस फैसले को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी लेकिन वहां भी 18 फरवरी 2021 को फैसला ठेकेदार के पक्ष में आया और मध्यस्थ के फैसले को बरकरार रखा गया। इसके बाद सरकार सुप्रीमकोर्ट पहुंची लेकिन 1 दिसंबर 2021 को सुनवाई के बाद सुप्रीमकोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। कोई रास्ता न देख अब मंत्रिमंडल ने ठेकेदार को रकम देने का फैसला किया। साथ ही इस पूरे मामले के जांच के भी आदेश  दे दिए गए। 
  

Created On :   3 Jan 2023 7:12 PM IST

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