अपने भीतर कई रहस्यों को समेटे हुए है पवनी की मुगलकालीन बावड़ी
नीलेश लोणकर। वरुड़ (अमरावती)। अमरावती जिले में ऐतिहासिक धरोहरों की कमी नहीं है। अंबादेवी के अलावा हेमाड़पंथी मंदिर, परकोटा, गाविलगढ़ का किला एक नहीं बल्कि कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं जिनका पर्यटन की दृष्टि से यदि विकास किया जाए तो राजस्व में आसानी से इजाफा हो सकता है। जिले की वरुड़ तहसील के ग्राम पवनी में भी एक ऐसी ही बावड़ी है िजसे बाराद्वारी बावड़ी के नाम से जाना जाता है। इसे प्राचीन स्थापत्य कला का नायाब नमूना कहा जा सकता है। इसके भीतर बनी नक्काशी और कमरानुमा घाट इसे विशेष बनाते हैं। माना जाता है कि यह बावड़ी 150 से अधिक साल पुरानी है और संभवत: मुगलकाल में इसका निर्माण किया गया हो सकता है। बावड़ी के बाहर से एक प्रवेश द्वार बना हुआ है जहां पर सीढ़यां नजर आती है। यह सीढ़ियां हमें कुएं के भीतर ले जाती हैं।
एक किसान के खेत में यह प्राचीन बावड़ी है। कुएं के भीतर पत्थरों से मूर्तियां उकेरकर नक्काशी की गई है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। बावड़ी के भीतर बने बारह कमरों के इसे ‘बारा द्वारी’ कुएं के नाम से जाना जाता है। इसका आकार अष्टकोणी है। गांव के श्याम और मोहन घारड़ नामक किसान बंधुओं के खेत में यह प्राचीन बावड़ी बनी हुई है। यह कुआं किसने बनाया, किस काल में बनाया गया, इस बात की किसी को कोई खबर नहीं। गांव वालों का कहना है कि इस कुएं में सांपों का डेरा है इसीलिए इस कुएं में उतरने से लोग डरते हैं। हालांकि हमने हिम्मत करके कुएं में सीढ़ियों से प्रवेश किया तो इसकी पुष्टि हो गई। सीढ़ियों से नीचे की ओर जानेवाले कमरे में काफी अंधकार था। बावड़ी के बारह कमरों के अलावा एक बड़ा दरवाजा भी यहां पर दिखाई देता है िजसकी पुरातत्व विभाग यदि जांच करे तो और भी रहस्यों से परदा उठ सकता है। जिस जमीन पर यह बावड़ी बनी हुई है, वह घारड़ बंधुओं के पूर्वजों की जमीन है। वरुड़ से करीब 8 कि.मी. पर दूरी पर बसे ग्राम पवनी में स्थित यह बावड़ी फिलहाल खंडहर होने की कगार पर है। इस प्राचीन धरोहर को सहेजने की आवश्यकता है ताकि नई पीढ़ी अपने समृद्धशाली तकनीक को जान सके।
Created On :   29 March 2023 3:36 PM IST