कुंभ 2019: जानिए... कौन होते हैं खूनी नागा साधु, क्यों दिया गया ये नाम...
कुंभ 2019: जानिए... कौन होते हैं खूनी नागा साधु, क्यों दिया गया ये नाम...
डिजिटल डेस्क, प्रयागराज। प्रयागराज में इस समय साधुओं का जमघट लगा हुआ है। आमतौर पर साधुओं की दुनियां काफी रहस्यमयी होती है, इसलिए लोगों को उनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि नागा साधु कई प्रकार के होते हैं। जैसे खूनी नागा साधु, खिचड़ी नागा, बर्फानी नागा साधु। नागाओं को लेकर ऐसे कई शब्द प्रचलित हैं, जो श्रद्धालुओं को हैरान करते हैं। आइए आपको बताते हैं कि खूनी नागा कौन होते हैं, और इनके इस नाम के पीछे का रहस्य क्या है?
इस तरह बनते हैं खूनी नागा साधु
जो साधु उज्जैन के कुंभ में नागा बनते हैं, उन्हें खूनी नागाओं की संज्ञा दी जाती है। इस संज्ञा के पीछे का कारण ये है कि ये नागा सैनिक की तरह होते हैं, जो धर्म की रक्षा के लिए खून भी बहा सकते हैं। खूनी नागा अस्त्र-शस्त्र धारण किए रहते हैं। खूनी नागा साधु बनने के लिए उस व्यक्ति को (जो नागा साधु बनना चाहता है) रात भर ओम नम: शिवाय का जाप करना होता है। इसके बाद अखाड़े के महामंडलेश्र्वर विजय हवन करवाते हैं। फिर सभी को क्षिप्रा नदी में 108 दुबकियां लगवाई जाती हैं। इसके बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे उनसे दंडी त्याग करवाया जाता है। तब जाकर वह नागा साधु बनते हैं।
ऐसे बनते हैं नागा साधु
नागा साधु की दीक्षा देने से पहले उसके स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को परखा जाता है। तीन साल तक दैहिक ब्रह्मचर्य के साथ मानसिक नियंत्रण को परखने के बाद ही नागा साधु की दीक्षा दी जाती है। दीक्षा लेने से पहले खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है। हिंदू धर्म में पिंडदान व श्राद्ध मरने के बाद किया जाता है। इसका मतलब हुआ सांसारिक सुख दुःख से हमेशा के लिए मुक्ति। पिंड दान और श्राद्ध के बाद गुरु जो नया नाम और पहचान देता है, उसी नाम के साथ इन्हें ज़िंदगी भर जीना होता है।
कैसे बनते हैं बर्फानी नागा
अखाड़ों के बीच ऐसी मान्यता है कि प्रयागराज के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को राजयोग मिलता है और शायद यही करण है कि उन्हें राजेश्र्वर नागा माना जाता है। वहीं हरिद्वार के कुंभ मेले में नागा साधु बनने वाले संन्यासियों को "बर्फानी नागा" कहा जाता है। कहा जाता है कि हरिद्वार चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा है और कुंभ के अन्य आयोजन स्थलों के मुकाबले हरिदूार में अधिक ठंड पड़ती है। इसलिए वहां नागा बनने वाले साधु-सन्यासी शांत प्रवृत्ति के होते हैं।