आजादी से भी पहले के इस ब्रिज का आज तक नहीं हुआ उद्घाटन

आजादी से भी पहले के इस ब्रिज का आज तक नहीं हुआ उद्घाटन

Bhaskar Hindi
Update: 2019-02-05 09:48 GMT
आजादी से भी पहले के इस ब्रिज का आज तक नहीं हुआ उद्घाटन

डिजिटल डेस्क,कोलकाता। कोलकाता का हावड़ा ब्रिज न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। साल 1936 में इसका निर्माण कार्य शुरु हुआ था और 1942 में ये पूरा हो गया था। 3 फरवरी 1943 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया था। 2018 में इसके 75 साल पूरे हुए। इसने जहां द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारी बमबारी झेली, तो वहीं स्वाधीनता आदोंलन, देश की आजादी और बंगाल के भयावह अकाल को भी देखा, लेकिन जो हैरानी वाली बात है वह ये है कि पूरी दुनिया में मशहूर और सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहे इस पुल का औपचारिक उद्घाटन तक नहीं हुआ। इसकी वजह थी कि, उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध जोरों से चल रहा था। दिसंबर 1942 में ही जापान का एक बम इस ब्रिज से कुछ ही दूरी पर गिरा था। इसलिए तय किया गया कि इसके इद्घाटन में कोई धूमधाम नहीं होगी। कोलकाता और हावड़ा के जोड़ने वाले इस पुल जैसे अनोखे पुल संसार भर में केवल गिने-चुने ही हैं। पिछले 75 सालों से ये पुल कोलकाता की पहचान रहा है। 

किस लिए बनाया गया हावड़ा ब्रिज
उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशक में भारत सरकार ने ने कोलकाता और हावड़ा के बीच बहने वाली हुगली नदी पर एक तैरते हुए पुल के निर्माण की योजना बनाई। ऐसा इसलिए क्योंकि उन दौर में हुगली में रोजाना कई सारे जहाजों का आना जाना होता था। खम्भों वाला पुल बनाने से कहीं जहाजों का आवाजाही में रुकावट न आए। इसलिए सन 1871 में हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया गया, लेकिन इस योजना को लागू होने में कई दशक लग गए। 

दोनों पायों के बीच 1500 फीट की दूरी 
इस कैंटरलीवर को बनाने में 26 हजार 500 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है। इसमें से 23 हजार पांच सौ टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी। तैयार होने के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था। पूरा ब्रिज सिर्फ नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे जो पायों पर टिका है। इसके दोनों पायों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है। नदी में कहीं कोई पाया नहीं है। 

हावड़ा ब्रिज की खासियत
इसकी खासियत यह है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को को जोड़ने के लिए नट-बोल्ट की बजाय धातु की बनी कीलों यानी रिवेट्स का इस्तेमाल किया गया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना ने इस ब्रिज को नष्ट करने के लिए भारी बमबारी की थी, लेकिन संयोग से ब्रिज को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। अब इससे रोजाना लगभग सवा लाख वाहन और पांच लाख से ज्यादा पैदल यात्री गुजरते हैं। ब्रिज बनने के बाद इस पर पहली बार एक ट्राम गुजरी थी। वर्ष 1993 में आवाजाही काफी ज्यादा बढ़ जाने के बाद ब्रिज पर ट्रामों का आना जाना बंद करवा दिया गया था। पोर्ट ट्रस्ट को साल 2011 में एक अजीब समस्या से जूझना पड़ा। अध्ययन करने पर एक बात सामने आई कि तंबाकू थूकने की वजह से ब्रिज के पायों की मोटाई कम हो रही है। तब स्टील के पायों को नीचे फाइबर ग्लास से ढ़कने पर लगभग 20 लाख रुपए खर्च हुए थे। 

आकर्षण का केंद्र  
यह ऐतिहासिक ब्रिज देशी-विदेशी सैलानियों के अलावा सत्यजीत रे से लेकर रिचर्ड एटनबरो और मणिरत्नम जैसे फिल्मकारों को भी लुभाता रहा है। यहां अनगिनत फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। वर्ष 1965 में कविगुरु रबींद्र नाथ के नाम पर इसका नाम रवींद्र सेतु रखा गया। हाल ही में इस ब्रिज के 75 साल पूरे होने पर इसकी मरम्मत और रखरखाव का जिम्मा संभालने वाले कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने कई योजनाएं तैयार की हैं। इसके तहत रोजाना इस ब्रिज पर पैदल चलने वाले लाखों यात्रियों के लिए एक शेड बनाया जाएगा। इस पोर्ट के अध्यक्ष बताते हैं कि इसके लिए पेशेवर वास्तुविदों की सहायता ली जाएगी। ताकि ब्रिज की खूबसूरती वैसी ही बनी रहे। 

 

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