70 साल से तीन पीढ़ियां बना रही रावण, यूं ही खास नहीं है यहां का दशहरा
70 साल से तीन पीढ़ियां बना रही रावण, यूं ही खास नहीं है यहां का दशहरा
डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर में रावण बनाने की परंपरा 70 साल पहले शुरू हुई। महल में रहने वाले 85 साल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हेमराजसिंह बिनवार ने इसकी शुरुअात की थी। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद 1948 में कानपुर के एक प्रोफेसर ध्यानसिंह ठाकुर नागपुर आये थे। उन्होंने देखा कि यहां सनातन धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार दशहरा तो मनाया जाता है, लेकिन रावण दहन नहीं होता। रावण दहन केवल दिल्ली और उत्तर भारत में होता था। ठाकुर ने यहां रावण दहन की संकल्पना रखी। पंजाब सेवा समिति ने रावण दहन की तैयारी दिखायी लेकिन उस समय सबसे बड़ी समस्या यह थी कि रावण का पुतला कहां से लाएंगे। तब हेमराजसिंह बिनवार जो कागज और बांबू से कलाकृति बनाने में माहिर थे, उनसे संपर्क किया गया। वे रावण का पुतला बनाने के लिए तैयार हो गए।
150 लोगों ने मिलकर खड़ा किया था पहला रावण
रविनगर के मैदान में रावण दहन की तैयारी हुई। पहला रावण 35 फीट ऊंचाई का बनाया गया। उसके सारे अंग अलग-अलग हिस्सों में बनाए गए थे। अकेले रावण के सिर का वजन 12 मन यानि 480 किलो था। रावण के शरीर के सारे अंगों को जोड़ने के बाद समस्या यह थी कि उसे खड़ा कैसे किया जाए। पूरे रावण का वजन 25 मन यानि 1000 किलो हो चुका था। उस समय क्रेन जैसी व्यवस्था नहीं थी। किसी ने कहा कि पुतले का सुलाकर ही दहन किया जाए जबकि बिनवार इसके पक्ष में नहीं थे। तब नागपुर महानगर पालिका के सहयोग से लकड़ी का बड़ा मचान और सीढ़ियां बनायी गईं। मोटे रस्से मंगाकर रावण को बांधा गया। मचान पर 50 और 100 लोग रावण के चारों ओर लगाए गए। बड़ी कवायद के बाद रावण को खड़ा किया गया। तब जाकर शहर का पहला रावण दहन हो पाया। दो साल तक रविनगर में रावण दहन हुआ। इसके बाद कस्तूरचंद पार्क में रावण दहन होने लगा। रविनगर में पहली बार दशहरे के दौरान लोगों को रावण दहन देखने को मिला।
अमूमन यह कम ही देखने को मिलता है कि किसी एक व्यवसाय या क्षेत्र में एक ही व्यक्ति अथवा परिवार का एकाधिकार होता है लेकिन नागपुर में ऐसा हो रहा है। शहर में 13 से अधिक स्थानों पर बड़े रावण के पुतलों का दहन किया जाता है लेकिन इसे बनाता है, एक ही परिवार। 70 साल से इस परिवार का एकछत्र राज चल रहा है। खास बात यह है कि जिस कलाकार ने नागपुर में रावण दहन की नींव रखी उसकी तीन पीढ़ियां इस काम में जुटी हैं। कलाकार साल के तीन महीने दिन रात इसे बनाने में लगे रहते हैं। विदर्भ और राज्य की सीमा से सटे दूसरे राज्यों में नागपुर में बने रावण के पुतलों की मांग है। रावण के पुतलों के निर्यात का बड़ा केंद्र नागपुर है।
रविनगर और कस्तूरचंद पार्क का रावण दहन कार्यक्रम देखने के बाद यह चलन शहर में बढ़ने लगा। शहर की कुछ संस्थाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में रावण दहन की परंपरा शुरू की। इनमें से पंजाब सेवा समिति और सनातन धर्मसभा का रावण दहन सबसे पुराना है। जब रावण दहन कार्यक्रम की संख्या बढ़ी तो रावण के पुतलों की भी मांग बढ़ी। नागपुर समेत विदर्भ और सीमा से सटे राज्यों में भी दशहरे पर रावण दहन होने लगे। इस कारण रावण बनाने वाले हेमराजसिंह बिनवार को काफी आर्डर मिलने लगे। पहला रावण 35 फीट ऊंचाई और 1000 किलो का बनने से जो दिक्कतें आयीं, उस पर गौर कर रावण का वजन कम करने का अभ्यास किया गया। साल दर साल इसका वजन घटाया जाने लगा। बनाने की तकनीक को और आसान किया गया। अब 10 फीट के रावण का वजन केवल 10 किलो होता है।
यहां तैयार होते हैं 15 विशालकाय पुतले
नागपुर में रावण के 15 विशालकाय पुतले तैयार होते हैं। इनके अलावा कुंभकर्ण आैर मेघनाद के पुतले भी बनाए जाते हैं। इनके ऑर्डर दो से तीन महीने पहले से आ जाते हैं। यह काम शहर में केवल बिनवार परिवार ही करता है। वे 10 फीट से 80 फीट ऊंचे रावण बनाते हैं। शरीर के सभी अंग अलग अलग बनाकर बाद में उन्हें जोड़ा जाता है। इसके निर्माण के लिए बांस, कागज, लकड़ी, सूत, रस्सी, गाेंद, रंग, मिट्टी आदि सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। इनकी कीमत फीट के हिसाब से तय की जाती है। इस समय 3 हजार रुपए प्रति फीट ऊंचाई के हिसाब से पुतले तैयार किये जाते हैं। यानि 10 फीट का रावण बनाने पर 30 हजार रुपए खर्च आता है। इस काम के अनुभवी कारागीरों की मारामारी है। आसानी से कारागीर नहीं मिलते। नये लोगों को बांस का स्ट्रक्चर बनाने से लेकर कागज चिपकाने समेत सभी काम सिखाने पड़ते हैं। बिनवार अपने यहां 20 लोगों को रोजगार देते हैं। महल और कड़बी चौक में पुतले बनाने का काम होता है।