यहां रात को आराम करने आता है माता 'सती' का यह रूप

यहां रात को आराम करने आता है माता 'सती' का यह रूप

Bhaskar Hindi
Update: 2017-07-25 04:26 GMT
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डिजिटल डेस्क, उज्जैन। मां हरसिद्धि भारत देश के उन प्राचीन मंदिरों में से एक है जहां से माता सती की कथा जुड़ी है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित इस मंदिर का माता सती के 51 शक्तिपीठों में 13वां स्थान है। हरसिद्धि मंदिर पूर्व में महाकाल एवं पश्चिम में रामघाट के बीच में स्थित है। तंत्र साधकों के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है, जो कि उज्जैन के आध्यात्मिक और पौराणिक इतिहास की कथाओं में वर्णित भी है।

पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब चक्र से मां सती के शव के कई टुकड़े हो गये। उनमें से 13वां टुकड़ा मां सती की कोहनी के रूप में उज्जैन के इस स्थान पर गिरा था। तब से मां यहां हरसिद्धि मंदिर के रूप में विराजमान हैं।

देवी को 11 बार सिर काट कर चढ़ाया
इतिहास के पन्नों से यह ज्ञात होता है कि मां हरसिद्धेश्वरी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी थीं, जिन्हें प्राचीन काल में ‘मांगल-चाण्डिकी’ के नाम से जाना जाता था। राजा विक्रमादित्य इन्हीं देवी की आराधना करते थे। उन्होंने 11 बार अपने शीश को काटकर मां के चरणों में समर्पित कर दिया था, लेकिन हरबार मां उन्हें जीवित कर देती थीं।

कहते हैं कि माता हरसिद्धि को राजा विक्रमादित्य स्वयं गुजरात से लाये थे। इसलिए माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं। रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं, इसलिए यहां संध्या आरती का महत्व है।

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