राजनीति से जुड़ना फिल्मों के लिए फायदेमंद! इन फिल्मों का मिला फायदा

राजनीति से जुड़ना फिल्मों के लिए फायदेमंद! इन फिल्मों का मिला फायदा

Bhaskar Hindi
Update: 2020-01-11 13:36 GMT
राजनीति से जुड़ना फिल्मों के लिए फायदेमंद! इन फिल्मों का मिला फायदा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कई बार विवाद फिल्मों के लिए फायदेमंद साबित होता है तो कई बार नुकसानदायक। दीपिका पादुकोण की फिल्म पद्मावत हो या फिर छपाक, दोनों ही फिल्में विवादों से जुड़ी और चर्चा का विषय बनी। बात करें फिल्म छपाक की तो इसे लेकर देश दो धड़ों में बंट गया है। एक वो धड़ा जो फिल्म को बॉयकॉट करने की अपील कर रहा है तो दूसरा वह जो इसे देखने के लिए लोगों को फ्री में टिकट भी बांट रहा है। कांग्रेस शासित कुछ प्रदेशों में फिल्म को टैक्स फ्री भी कर दिया गया है।

ये फिल्म 10 जनवरी को रिलीज हुई है। अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के जेएनयू विवाद के बाद इस फिल्म को राजनीति से जोड़ दिया गया है। ये फिल्म अब बीजेपी vs कांग्रेस बन गई है। इस फिल्म को जहां कांग्रेस का समर्थन मिल रहा है, वहीं बीजेपी इसका विरोध कर रही है। एक तरफ दीपिका के जेएनयू जाने के बाद बीजेपी को लगता है कि दीपिका जेएनयू में प्रोटेस्ट कर रहे छात्रों का समर्थन कर रही हैं। तो वहीं, कांग्रेस दीपिका के जेएनयू जाने के बाद कांग्रेस शासित तीन राज्यों में इस फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया गया है। 

इससे पहले भी दीपिका की फिल्म पद्मावत रिलीज होने से पहले कई विवादों में घिर गई थी। इस फिल्म को राजपूत समाज का घोर विरोध सहना पड़ा था। इस फिल्म में दिखाए गए कुछ दृश्यों के चलते करणी सेना इसके रिलीज होने के विरुद्ध थी। इस फिल्म का विवाद इतना बढ़ गया था कि जगह-जगह हिंसा ने जन्म ले लिया था। लोग राह पर खड़े वाहनों को आग के हवाले कर रहे थे। अहमदाबाद और गुरुग्राम की तस्वीरें तो विचलित करने वाली थी।

संजय लीला भंसाली की विवादास्पद फिल्म "पद्मावत" के विरोध में सड़कों पर उतरे मुट्ठी भर गुंडों ने आगजनी कर पूरे देश की छवि को शर्मसार किया था। मॉल में हमला, मोटरसाइकलों को जलाना और बसें फूंक देना ये सब विरोध करने का तरीका था। दरअसल, बिना फिल्म देखे पद्मावत के बारे में यह धारणा बना दी गई थी कि इसमें राजपूतों के शौर्य, साहस और बलिदान को कम कर दिखाया गया है। रानी पद्मावती के ऐतिहासिक किरदार के साथ छेड़छाड़ का भी आरोप लगाया गया था। 

इन फिल्मों के विवाद को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि इन सेनाओं के मुद्दे तात्कालिक होते हैं और उनके समाधान ढूंढने की कोशिश भी स्थाई नहीं होती। इनका मकसद एक मुद्दे को बड़ा कर लोकप्रियता हासिल करना होता है। इस लोकप्रियता की आड़ में राजनीतिक मंसूबे सीधे करने का इरादा भी दिखाई देता है। करणी सेना के विरोध के पीछे भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर पुलिस और राज्य प्रशासन हिंसक विरोधों से सख्ती से क्यों नहीं निपट पा रहा है। 

हालांकि ऐसे विवादों के चलते फिल्मों को काफी फायदा मिलता है। फिल्म पद्मावत हो या फिल्म छपाक, दोनों ही फिल्म राजनीति से जुड़ने के बाद फायदे में रही है। फिल्म छपाक को तीन राज्यों में टैक्स फ्री कर दिया गया है। 


 

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