कोर्ट कचहरी: धन आवंटित करने का आरोप, मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ की याचिका खारिज

  • बीएमसी और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ दाखिल की गई थी याचिका
  • कोर्ट ने कहा यह याचिका राजनीति से प्रेरित
  • धन आवंटित करने की शक्ति का मामला

Anita Peddulwar
Update: 2024-01-18 13:05 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि पूरी याचिका राजनीति से प्रेरित है। ये आधार हमेशा हारे हुए वादी की शरणस्थली होते हैं। अदालत ने बीएमसी, महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मुंबई कांग्रेस प्रमुख वर्षा गायकवाड़ की याचिका खारिज कर दी। गायकवाड़ ने आरोप लगाया था कि पालक मंत्रियों के निर्देश पर सत्तारूढ़ दल के विधायकों, जिनमें ज्यादातर भाजपा के विधायक थे। उनके अनुरोध पर बीएमसी द्वारा 20 से 50 करोड़ रुपए की धनराशि आवंटित की गई थी।

न्यायमूर्ति गौतम एस पटेल और न्यायमूर्ति कमल आर खटा की खंडपीठ ने धारावी के विधायक गायकवाड़ और दो पूर्व नगरसेवक अशरफ आजमी और मेहर मोहसिन हैदर की याचिका खारिज करते हुए कहा कि प्रशासक के रूप में बीएमसी आयुक्त के प्रस्ताव को चुनौती देने वाली याचिका 16 फरवरी 2023 को दायर हुई, जिसमें पालक मंत्रियों को उनके द्वारा प्रस्तुत आवेदन के अनुसार धन आवंटित करने की शक्तियां सौंपीं गयी है। हमें स्पष्ट रूप से बताता है कि पूरी याचिका राजनीति से प्रेरित है। यदि इसके बारे में कोई संदेह है, तो इसे याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए आधार पर शांत कर दिया गया है। जहां अब एक संदर्भ है।

भाजपा, शिवसेना और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके खिलाफ आरोप दुर्भावना पूर्ण है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कहा है, दुर्भावना पूर्ण आरोपों के लिए सबसे मजबूत सबूत की आवश्यकता होती है, जो वर्तमान याचिका में मामला नहीं है। गायकवाड़ और आजमी और हैदर ने याचिका में दावा किया था कि मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) निधि को पालक मंत्रियों की मंजूरी के साथ मनमाने ढंग से आवंटित किया गया है। याचिका में राज्य सरकार और बीएमसी के विकास कार्यों के लिए धन आवंटन की सिफारिश करने की शक्तियां पालक मंत्रियों को सौंपने के फैसले को चुनौती दी गई थी। मंगल प्रभात लोढ़ा मुंबई उपनगर और दीपक केसरकर शहर के पालक मंत्री हैं। मार्च 2022 में नगरसेवकों का पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद सरकार ने बीएमसी आयुक्त इकबाल सिंह चहल को प्रशासक नियुक्त किया और बाद में पालक मंत्रियों को विकास कार्य निधि के आवंटन के लिए मंजूरी की सिफारिश करने की शक्तियां सौंपी गईं।

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि स्पष्ट रूप से याचिका केवल एक ही उद्देश्य के लिए है, यह सुनिश्चित करना कि धन का आवंटन इन याचिकाकर्ताओं की इच्छा के अनुसार किया जाए। यह अकल्पनीय है। इसका एक उद्देश्य है कि संपूर्ण व्यवस्था वहां क्यों है और पालक मंत्रियों द्वारा (धन आवंटन के प्रस्तावों पर) अंतिम हस्ताक्षर किया जाता है। ये बीएमसी आयुक्त और बीएमसी के लिए महत्वपूर्ण जांच और संतुलन हैं। पालक मंत्रियों का निरीक्षण करने का कर्तव्य है। ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता भूल गया है कि केवल दो प्राधिकरण हैं, जो बीएमसी आयुक्त को हटा सकते हैं। वे हाई कोर्ट और राज्य सरकार हैं। प्रशासनिक निरीक्षण में कुछ भी गलत नहीं है। याचिकाकर्ता जिस तरह की मनमानी का दावा करते हैं, उससे पता चलता है कि याचिकाकर्ता यह तय करेंगे कि बीएमसी आयुक्त, स्थायी समिति और सरकार धन कैसे आवंटित करेंगे।

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