एसिड अटैक सर्वाइवर की दास्तां, बेटी और घर खर्च उठाने नहीं मिल रही अच्छी नौकरी

एसिड अटैक सर्वाइवर की दास्तां, बेटी और घर खर्च उठाने नहीं मिल रही अच्छी नौकरी

Anita Peddulwar
Update: 2020-01-14 06:44 GMT
एसिड अटैक सर्वाइवर की दास्तां, बेटी और घर खर्च उठाने नहीं मिल रही अच्छी नौकरी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। एसिड अटैक सर्वाइवर पर बनी फिल्म "छपाक" ने विरोध के बावजूद रिलीज के तीन दिन में 19 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई भले ही कर ली हो, लेकिन एक एसिड अटैक सर्वाइवर ऐसी भी है, जिसे अपनी मतिमंद बेटी का इलाज कराने और घर चलाने के लए 10-15 हजार रुपए की नौकरी भी नहीं मिल रही है। क्योंकि न तो उसके पास किसी बड़े आदमी की सिफारिश है और न ही उसके दर्द को समझने वाला कोई इंसान अब तक मिला। जबकि खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए उसने न केवल जमाने से लड़कर पढ़ाई की बल्कि कंप्यूटर में विशेषज्ञता भी हासिल की। यह दर्द भरी कहानी चंद्रपुर जिले के माजरी गांव निवासी अर्चना मानुसमारे की है। जिस पर उसके पति ने ही एसिड फेंककर चेहरे के साथ-साथ सुनहरे सपनों को भी झुलसा दिया।  

अर्चना के मुताबिक, 10वीं कक्षा पास करने के बाद 1999 में उनकी शादी यवतमाल जिले के पटाला गांव में कर दी गई। पति आदतन शराबी था। किसी भी पुरुष से बात करने पर शक करता और मारपीट करने लगता था। इसी बीच उन्होंनेे एक बेटी को भी जन्म दिया। 2005 की एक रात जब वे गहरी नींद में थीं, पति ने उनके ऊपर तेजाब डाल दिया। इस हमले में उनका चेहरा और शरीर का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह झुलस गया। 

वह 2 माह तक आईसीयू में भर्ती रही। पुलिस में शिकायत तो की लेकिन ज्यादा शराब पीने के कारण पति की जल्द ही मृत्यु हो गई। ऐसे में लड़ाई भी लड़ती तो किसके खिलाफ। साल 2014 में घर से पांव बाहर निकालने के बाद अब तक अर्चना एक अदद नौकरी के लिए कई दरवाजे खटखटा चुकी है। उसने बताया, ‘मैंने सबसे पहले आयुर्वेद संजीवनी मेडिकल पर 3 हजार रुपए महीने की नौकरी की। पर्चे पर मरीजों का नाम लिखती थी और दवा कैसे लेनी है, यह समझाती थी। फिर पेट्रोल पंप पर 5 हजार रुपए महीने पगार वाली नौकरी की। इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता था तो नौकरी छूट गई। फिर सेटअप बॉक्स रिचार्ज कराने की 3 हजार रुपए महीने वाली नौकरी मिली लेकिन वेतन देरी से मिलने के कारण पिछले महीने उसे भी छोड़ना पड़ा। फिलहाल बेरोजगार हूं।’

पिता ने दिया जिम्मेदारी  उठाने के लिए हौसला
अस्पताल से निकलने के बाद अर्चना कई साल तक घर की चारदीवारी में कैद रहीं। जीने की उम्मीद छोड़ते देख बूढ़े पिता ने समझाया, ‘न केवल अपनी बल्कि बेटी की जिम्मेदारी उठाने के लिए तुम्हें मजबूत बनना होगा। घर से बाहर निकलना होगा।’ लेकिन जब घर से निकलतीं तो बच्चे ही नहीं बड़े भी उनका चेहरा देखकर डर जाते। उपचार के लिए अर्चना अब तक 6 सर्जरी करवा चुकी हैं।

जो भी मिला, उससे नौकरी मांगी
अर्चना ने बताया, ‘गांव में जो भी पढ़ा-िलखा दिखाई देता है, उससे नौकरी के बारे में पूछती हूं। मेरी 16 साल की मतिमंद बेटी है, जिसके इलाज पर हर माह 5 हजार रुपए का खर्च आता है। 2014 के बाद 12वीं तक पढ़ाई की। फिर कंप्यूटर के िलए एमएसईआईटी डिप्लोमा किया क्योंकि पहले जहां भी जाती थी, लोग कहते थे कि कितनी पढ़ी-लिखी हो, कंप्यूटर आता है क्या? बेटी की देखभाल और अपना खर्च उठाने के िलए 10-15 हजार रुपए महीने तक की नौकरी की जरूरत है। चंद्रपुर में पॉवर हाउस और डिफेंस फैक्ट्री में नौकरी के अवसर हैं। नागपुर के अलावा बाहर भी नौकरी करने जा सकती हूं। नौकरी होगी तो बेटी को हॉस्टल में रख सकूंगी।"

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