प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप की जानकारी से अनभिज्ञ है प्रशासन, आरटीआई में हैरतअंगेज खुलासा

प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप की जानकारी से अनभिज्ञ है प्रशासन, आरटीआई में हैरतअंगेज खुलासा

Anita Peddulwar
Update: 2019-09-16 09:53 GMT
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डिजिटल डेस्क, नागपुर। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई ‘प्राइम मिनिस्टर रिसर्च फेलोशिप’ (पीएमआरएफ) योजना की जानकारी स्थानीय प्रशासन के पास उपलब्ध नहीं। यह खुलासा आरटीआई के तहत मांगी जानकारी में हुआ है। जानकारी संबंधी कागज विभागीय आयुक्तालय से जिला प्रशासन व जिला प्रशासन से जिला परिषद तक घूमता रहा, लेकिन योजना की जानकारी नहीं मिल सकी। इस योजना के तहत पीएचडी करनेवालों को 80 हजार रुपए तक फेलोशिप दी जाती है। हैरत यह है कि यह सब डिजिटाइजेशन के इस दौर में हो रहा है। 

आरटीआई एक्टिविस्ट अभय कोलारकर ने पीएमआरएफ योजना के बारे में विभागीय आयुक्तालय से जानकारी मांगी थी। कितने लोगों ने पीएमआरएफ योजना के लिए आवेदन किए, कितने आवेदन मंजूर हुए, कितने लोगों को रिसर्च फेलोशिप दी गई, इस पर कितना खर्च हुआ, एक व्यक्ति को कितनी फेलोशिप दी जाती है, इसकी शर्तें व योजना के प्रसार-प्रचार पर आए खर्च की जानकारी मांगी गई थी। विभागीय आयुक्तालय ने इस संबंध में जानकारी नहीं होने का कारण बताकर यह आवेदन जिला प्रशासन को भेज दिया था। जिला प्रशासन ने इस संबंध में जानकारी उपलब्ध नहीं होने का कारण बताकर यह आवेदन जिला परिषद को भेज दिया था। जिला परिषद के स्वास्थ्य अधिकारी ने इस संबंध में कोई योजना जिला परिषद के स्वास्थ्य विभाग में अस्तित्व में नहीं होने का जवाब दिया। इस तरह कागज एक विभाग से दूसरे विभाग में घूमता रहा, लेकिन योजना की जानकारी नहीं मिल सकी। 

यह है योजना

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से शुरू की गई पीएमआरएफ योजना के तहत पीएचडी की जाती है। पीएचडी करनेवाले व्यक्ति को पांच साल तक  फेलोशिप दी जाती है। पहले दो साल 70 हजार, तीसरे साल 75 हजार व आखिरी के दो साल 80-80 हजार रुपए फेलोशिप दी जाती है। 

सरकारी योजना की जानकारी होनी चाहिए 

केंद्र सरकार द्वारा लोगों की सुविधा के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं। पीएमआरएफ के तहत पीएचडी की जाती है। केंद्र सरकार के योजना की जानकारी विभागीय आयुक्तालय, जिला प्रशासन व जिला परिषद के पास उपलब्ध नहीं होना गंभीर बात है। प्रशासन के पास सरकारी योजनाओं की जानकारी होनी चाहिए। -अभय कोलारकर, आरटीआई एक्टिविस्ट नागपुर
 

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