संतरानगरी में रिमझिम फुहार के बीच मिस्रे और काफिया सुनकर खूब बजी तालियां- जान लीजिए क्या है और क्यों है गजल
बहार ए गजल संतरानगरी में रिमझिम फुहार के बीच मिस्रे और काफिया सुनकर खूब बजी तालियां- जान लीजिए क्या है और क्यों है गजल
डिजिटल डेस्क, नागपुर। गजल क्या है, गजल क्यों है, यह एक लंबी तवारीख है, लेकिन कहा जा सकता है कि 13वीं 14वीं सदी के दौरान अमीर खुसरो ने गजल का पहला एक्सपेरीमेंट किया था।
जिसके शब्द थे,
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल
दुराये नैना बनाये बतियाँ
मानो यहां से गजल चलती हुई दुनियाभर में फैल गई।
इसके बाद मिर्ज़ा गालिब का एक दौर आया, जो हर दौर में जवां है, नया है।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मशहूर शायर निदा फाजली ने अपने एक वीडियो में कहा कि गजल ने दर्द को मुहब्बत बना दिया। जिसकी जरूरत पूरी दुनिया को है। जो कभी बच्चों की आंखों में मुस्कुराती है, माओं की निगाहों से जगमगाती है और बहन की चूड़ियों से खनखनाती है।
धीरे-धीरे गजल कई भाषाओं में छा गई। पंजाबी में बुल्ले शाह की शानदार रचनाओं के साथ ही गजल उर्दू, मराठी जैसी जुबानों में और भी निखरती चली गई, हालांकि उर्दू में गजल ने जो शाब्दिक श्रृंगार किया है, उसका कोई सानी नहीं।
"ऊर्जा" रजनी संबोधी ने अपनी कविता में जिन्दगी को अलग अंदाज में जीने की सीख दी
जियो जिंदगी, ऐसे थोड़ी
बारिशें करे यादें ताजी
प्यार को तुम बस प्यार देदो
तुम भीगने हो जाओ राजी
नाच नाच के तुम थक जाओ
मनभावन देखो हरियाली,
जोड़के प्रकृति संग नाता
जोर-जोर से बजाओ ताली
हसते रहें सदा मुस्कुराते रहें
कायम रहे मुख पर लाली
हाथ मिलाकर साथ चलें हम
संग हो जब प्यारी सहेली
काले बादल गीले रास्ते
हाथ में हो चाय की प्याली,
जल्लोष करो,आघोष में तुम
हरियाली संग रहे खुशयाली
ना अपना यहां न कोई पराया
भूलकर देखो सारी गाली
नफरत की दीवार मिटाकर
बोलते जाएं प्यार की बोली
क्या है गजल, क्यों है गजल
देखा जाए तो गजल अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है, जो फ़ारसी-उर्दू-पंजाबी-नेपाली और हिंदी साहित्य में काभी लोकप्रिय है।
ग़ज़ल एक बहर के अनुसार लिखे गुए शेरों के समूह को कहते है। पहले शेर को मतला कहा जाता हैं। अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। ध्यान रखने वाली बात है कि मक़्ते में शायर अपना नाम रखता है।
वैसे एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं। जो एक दूसरे से अलग होते हैं।
शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहते है, साथ ही दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ बोला जाता है। इसमें मिस्रे का खासा महत्व है, शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है।
सबसे अच्छे शेर को शाहे बैत और ग़ज़लों के संग्रह को दीवान कहते हैं। आपको बता दें कि उर्दू का पहला दीवान शायर कुली कुतुबशाह बताए जाते हैं।
इस अवसर पर प्रभाकर तांडेकर, प्रा. विनय पाटील, प्रा. प्रकाश भोंडे, चरणदास वैरागडे, मुजतर हयात, ऊर्जा रजनी, रोशनी गणवीर ने मराठी में गजल पढ़कर खूब तालियां बटोरीं।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे कलाम अहमद खान ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाएं पेश की।
कैसे दौड़ेगा पहले चलना सीख
गिरने वाले खुद संभलना सीख
फरेबी दुनिया से बचना है तो
तमाम चेहरों को पढ़ना सीख
दिल में चाह है तो राह भी मिलेगी
मंजिल के लिए मचलना सीख
जमान तुझको सलाम करेगा
सूरज की तरह चमकना सीख
औरों को रौशनी देना है तो प्यारे
चराग की तरह जलना सीख
आसमान पर राज करना है तो
बाज की तरह ऊंचा उड़ना सीख
शिक्षक और पत्रकार तजिन्दर सिंह ने अपनी गजल में अच्छे दोस्तों को देखने परखने की बात कही
कोई अच्छा दोस्त बना लेना
और वक्त आए तो आजमा लेना
यूं तो राहों में कांटे चुभेंगे कई
फूल रखो मलहम बना लेना
हर कोई यहां रहम दिल नहीं होता
किसी अपने का वहम बना लेना
इस भीड़ में हाथ बढ़ाएगा कौन
साथ चलो अपना बना लेना
कौन कहता है कि किस किसी को किसी का दर्द नहीं
किसी दर्दमंद से दर्द बंटा लेना
यूं राहों में कांटे चुभेंगे कई
फूल रखो मलहम बना लेना
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कवि अमानी कुरैशी ने संसार को सुंदर रूप देने के लिए कलमबंद अल्फाज कहे,
जहां न कोई ऊंच नीच हो,
ऐसा एक संसार चाहिए
ओढ़ना हो गर आदर्श की चादर,
मन मे उच्च विचार चाहिए
विश्वासी जनता को अमानी,
जीने का अधिकार चाहिए..
रिमझिम फुहार के बीच जानेमाने व्यंगकार टीकाराम साहू ‘आजाद’ ने सियासत और हार्स ट्रेडिंग पर अपनी रचना सुनाई, जिसे लेकर उन्होंने जमकर तालियां बटोरी।
घोड़ों का अनशन
जंतर - मंतर पर
धरने पर बैठे घोड़े
हिनाहिना रहे थे
और
घोड़े बेच कर सोने वाले
कयासों के
घोड़े दौड़ा रहे थे...
सड़क से संसद तक
चर्चा था आम
ऐसा क्या पहाड़ टूटा कि
घोड़ा बिरादरी
धरने पर उतर आया
घोड़ों का
यह लोकतांत्रिक रास्ता देख
उनका इंटरव्यू लेने से
मैं खुद को नहीं रोक पाया....
हमने घोड़ों के नेता से पूछा सवाल-
हे अश्वराज,
दूल्हों के बजाय
आसमान सिर पर क्यों उठा रखा है
नक्कारखाने में तूती के दौर में
क्यों
अपनी मांगों का ढोल बजा रखा है
क्या तू
लूटी- पीटी जनता से भी अभागा है
जनता 75 वर्षो से सोई है
और
एक तू अधिकारों के लिए जागा है
उपराजधानी में इन दिनो गजल नई ईबारत गढ़ रही है, कई संस्थाएं साहित्य के माध्यम से नए और पुराने कवियों को एक मंच पर ले आईं, इसी कड़ी में शब्दशिल्प के बैनर तले प्रोत्साहित करने के लिए कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। नवोदित साहित्य सांस्कृतिक मंडल के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार दोपहर 3 बजे त्रैभाषिक मुशायरा हिन्दी, मराठी और उर्दू भाषा में आयोजित हुआ। जिसमें कवि प्रभाकर तांडेकर ने अपनी रचना सुनाई। इस दौरान उन्होंने कहा कि अच्छे साहित्य के लिए कवियों की हौसला अफजाई जरूरी है।
वरिष्ठ कवि नागोराव सोनकुसरे की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में शायर अमानी कुरैशी और दैनिक भास्कर के डिजिटल जर्नलिस्ट तजिन्दर सिंह बतौर प्रमुख अतिथि उपस्थित थे।