आंध्र प्रदेश से आ रही प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली की खेप, चोरी से की जा रही बड़े पैमाने पर बिक्री

आंध्र प्रदेश से आ रही प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली की खेप, चोरी से की जा रही बड़े पैमाने पर बिक्री

Bhaskar Hindi
Update: 2020-02-17 09:16 GMT
आंध्र प्रदेश से आ रही प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली की खेप, चोरी से की जा रही बड़े पैमाने पर बिक्री

मांसाहारी फिश का पालन और बेचने पर है रोक, कुछ महीने पहले पकड़ी गई थीं एक ट्रक मछलियाँ
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
यदि आप मछली खाने के शौकीन हैं, तो कहीं प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली का तो सेवन नहीं कर रहे हैं? नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी)ने कई साल पहले ही इसके पालन और बिक्री पर रोक लगा दी है, लेकिन फिर भी चोरी छिपे इसको न सिर्फ पाला जा रहा है, बल्कि शहर में इसकी अच्छी-खासी खपत भी है। वैज्ञानिक तौर पर इस मांसाहारी मछली को खाने से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा है, वहीं पर्यावरण की दृष्टि से यह देश की प्राकृतिक मछलियों के वजूद के लिए घातक है। 
कोलकाता से शीड्स की सप्लाई
मत्स्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डीके झारिया ने बताया कि कम खर्च में इसका पालन बेहतर होता है। यही कारण है कि इसका चोरी छिपे कारोबार किया जा रहा है। थाई मांगुर के बीज की आपूर्ति बांग्लादेश-कोलकाता से चोरी छिपे होती है, जबकि  मछलियाँ दक्षिण से महाराष्ट्र के रास्ते आती हैं। कुछ महीने पहले महाराष्ट्र से आईं एक ट्रक मांगुर मछलियों को जमीन में गाड़कर विनष्टीकरण किया गया था। 
दक्षिण से ज्यादा सप्लाई
डिप्टी डायरेक्टर झारिया का कहना है कि दक्षिण के प्रदेशों में इसका चलन सबसे पहले हुआ था। सबसे पहले 1998 में केरल में इसे बैन किया गया था। दो साल बाद पूरे देश में इस पर प्रतिबंध लगाया गया। 
देशी मछलियों को कर देगी खत्म
बताया गया कि थाई मांगुर मछली छोटे से टैंक में ही बड़ी संख्या में पनप जाती हैं। इनको जानवरों का सड़ा मांस दिया जाता है। यदि टैंक ओव्हरफ्लो होगा और ये पानी के बहाव में नदी तक पहुँचेंगी, तो वहाँ की मछलियों को खा जाएँगी। यही कारण है कि एनजीटी ने इन्हें जलीय पर्यावरण के लिए खतरा मानते हुए इनके पालन और बिक्री पर रोक लगाई है। 
कम खर्च में पालन, बेहतर मुनाफा
थाई मांगुर मछली को सबसेे गंदी मछलियों में शुमार किया जाता है। यह गंदगी में पलने के साथ ही सड़ा-गला मांस और गंदी चीजें खाती है। इसके बढऩे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चार महीने में ही यह तीन किलो वजन तक की हो जाती है। दूषित पानी में जहाँ दूसरी मछलियाँ ऑक्सीजन की कमी से मर जाती हैं, वहीं यह उस गंदगी में भी जिंदा रहती है। यह छोटी मछलियों सहित अन्य जलीय कीड़े-मकोड़े खाती है, जिससे तालाबों-नदियों का पर्यावरण भी खतरे में पड़ता है। इस प्रकार कम खर्च में इसका पालन होता है और यह 50 से 75 रुपए किलो तक बिक जाती है। 
लगातार कर रहे मॉनीटरिग
मत्स्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि वे शहर के बड़े मछली विक्रेताओं सहित मछलियों की आपूर्ति की लगातार निगरानी करते हैं। विक्रेताओं के टैंकों का हर सप्ताह निरीक्षण किया जाता है। यह मछली कैंसर के साथ ही कई अन्य बीमारियों को जन्म देती है। जलीय पर्यावरण के साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह घातक है। 
इनका कहना है
अफ्रीकन कैट फिश कहलाने वाली थाई मांगुर मछली काफी घातक होती है। इसकी चोरी छिपे बिक्री हो रही है, जिसे फिशरी डिपार्टमेंट और प्रशासन को रोकना चाहिए। देश में इसकी बिक्री और पालना प्रतिबंधित है। 
डॉ. एसके महाजन, डीन, फिशरी कॉलेज 
 थाई मांगुर मछली बायोडायवर्सिटी के लिए हानिकारक है। अफ्रीकन ब्रीड की इस मछली को अति मांसाहारी(हायली आर्मीओरस)की श्रेणी में रखा गया है। इसकी बिक्री और पालन को रोकने विभाग सक्रिय है। 
डीके झारिया, डिप्टी डायरेक्टर, फिशरी डिपार्टमेंट 

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