समानांतर न्यायालय चलाने के आरोप में भोपाल के काजी व मस्जिद कमेटी के सचिव ने मांगी हाईकोर्ट से माफी

समानांतर न्यायालय चलाने के आरोप में भोपाल के काजी व मस्जिद कमेटी के सचिव ने मांगी हाईकोर्ट से माफी

Bhaskar Hindi
Update: 2020-02-25 07:54 GMT
समानांतर न्यायालय चलाने के आरोप में भोपाल के काजी व मस्जिद कमेटी के सचिव ने मांगी हाईकोर्ट से माफी

अवमानना मामले पर हाईकोर्ट ने चेतावनी देकर किया बरी

डिजिटल डेस्क जबलपुर । उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक के बाद भी मस्जिद कमेटी भोपाल द्वारा वैवाहिक विवादों व तलाक के मामलों पर समानांतर न्यायालय लगाने पर मस्जिद कमेटी भोपाल के सचिव एस एम सलमान तथा दारुल कजा मस्जिद कमेटी के काजी मुश्ताक अली नदवी ने मंगलवार को माफी मांगी। उनके द्वारा पेश शपथ पत्र पर गौर करने के बाद जस्टिस संजय यादव और जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ ने उन्हें चेतावनी देकर अवमानना के आरोप से बरी लर दिया।
गौरतलब है कि भोपाल के सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद वसीम खान की ओर से दायर इस अवमानना याचिका में कहा था कि वर्ष 2009 में मोहम्मद जहीर खान कोटी ने  उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करके आरोप लगाया था कि मस्जिद कमेटी द्वारा समानांतर न्यायालय लगाकर मुस्लिम वर्ग के लोगों के वैवाहिक विवादों व तलाक के मामले की सुनवाई की जाती है। आरोप यह भी था कि वहां पर बनी समानांतर न्यायालय में कटघरे भी बनाए गए हैं और वहां पर भोपाल, सीहोर और रायसेन जिलों से संबंधित मामलों पर जज की हैसियत से फैसले सुनाए जाते हैं। जनहित याचिका में लगे आरोपों को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने 14 अगस्त 2012 को भोपाल में समानांतर कोर्ट चलाए जाने पर रोक लगा दी थी। इस अवमानना याचिका में आरोप था कि हाईकोर्ट की रोक के बाद भी भोपाल में समानांतर न्यायालय चलाई जा रही, जो अवैधानिक है।  इस अवमानना मामले पर पिछली सुनवाई पर हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी भोपाल के सचिव एस एम सलमान तथा दारुल कजा मस्जिद कमेटी के काजी मुश्ताक अली नदवी को हाजिर होने के निर्देश दिए थे। सोमवार को आगे हुई सुनवाई के दौरान दोनों अनावेदक कोर्ट में हाजिर रहे। युगलपीठ ने दोनों को हलफनामे पर जवाब पेश करने के निर्देश देकर मंगलवार को मामले पर आगे सुनवाई करने कहा था। मंगलवार को आगे हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आदिल उस्मानी और दोनों अनावेदकों की ओर से अधिवक्ता अहादुल्ला उस्मानी हाजिर हुए। दोनों अनावेदकों की ओर से पेश शपथपत्र पर गौर करने के बाद युगलपीठ ने उन्हें बरी कर दिया।
 

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