कैंसर की बिगड़ी मशीन का मरीजों पर हो रहा साइड इफेक्ट, थेरेपी से बढ़ रही पीड़ा

कैंसर की बिगड़ी मशीन का मरीजों पर हो रहा साइड इफेक्ट, थेरेपी से बढ़ रही पीड़ा

Anita Peddulwar
Update: 2019-01-19 11:52 GMT
कैंसर की बिगड़ी मशीन का मरीजों पर हो रहा साइड इफेक्ट, थेरेपी से बढ़ रही पीड़ा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शासकीय मेडिकल कॉलेज तथा अस्पताल में अपना इलाज करवाने पहुंच रहे कैंसर के मरीज दर्द लेकर लौट रहे हैं। दरअसल, यहां जिस कोबाल्ट मशीन से मरीजों की थेरेपी की जा रही है, वह कैंसर के सेल से ज्यादा शरीर के स्वास्थ्य सेल को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। जिसके कारण मरीज और कमजोर हो जाते हैं। यही कारण है कि महाराष्ट्र सहित मुंबई और औरंगाबाद जैसे शहरों में अन्य मेडिकल कॉलेज में इस मशीन को बदला जा चुका है। जबकि नागपुर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में अब भी इसी मशीन से इलाज जारी है।

मरीजों की परेशानी को देखते हुए इसे कई बार बदलने की बात उठी मगर कोई सार्थक पहल नहीं हो सकी। यहां से थेरेपी करवाने के बाद जब मरीजों की हालत खराब होने लगती है तब उन्हें बताया जाता है कि यह मशीन का साइड इफैक्ट है। ऐसे में वे ठगे से रह जाते हैं।

क्या अंतर है दोनों मशीनों में

कोबाल्ट :
मरीज के शरीर के जिस हिस्से में कैंसर के सेल होते हैं। कोबाल्ट मशीन उसको मारने के साथ शरीर के आस-पास के अन्य हिस्सों की भी सिंकाई कर देती है, जिसके कारण अच्छे सेल भी खत्म हो जाते हैं, जिससे मरीज कमजोर हो जाता है।
लीनियर एक्सीलरेेटर : यह मशीन केवल उसी जगह की सिंकाई करती है, जहां कैंसर के सेल होते हैं। यह शरीर के अन्य हिस्सों को नुकसान नहीं पहुंचाती है।

मरीजों को कैसे दे रही है दर्द : कैंसर के मरीज पहले ही शरीर की कमजाेरी से जूझ रहे होते हैं। ऐसे में कोबाल्ट मशीन से होने वाली सिंकाई शरीर के अच्छे सेल को भी खत्म कर देती है, इस कारण मरीज और कमजोर हो जाता है। जिस कारण उसे सामान्य काम करने लायक भी शक्ति नहीं बचती। वहीं दूसरे रोग भी आसानी से पनप जाते हैं।

जिम्मेदार कौन : सालों से नई मशीन को लाने की जरूरत महसूस की जा रही है, मगर इसके लिए प्रयास नहीं हुए। यहां तक कि वर्तमान डीन अभिमन्यू निसवाड़े को कई बार कहा गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उनकी रुचि मरीजों की चिंता से ज्यादा राजनीतिक आयोजनों को सफल बनाने में दिखी। 

2006 में लगाई गई थी मशीन : एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल संसाधनाें की कमी से जूझ रहा है। अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग में वर्ष 2006 में स्थापित की गई कोबाल्ट और ब्रेकी थेरेपी 3 चैनल मशीन से आज भी कैंसर के मरीजों का उपचार किया जा रहा है। दोनों मशीनें कालबाह्य होकर भी मरीज उसी से उपचार के लिए मजबूर है। मुख्यमंत्री की नगरी में कैंसर के उपचार की अत्याधुनिक सुविधाओं का अभाव है। कालबाह्य मशीनों से उपचार ले रहे मरीजों का कैंसर ठीक करने के लिए अच्छे सेल का नुकसान हो रहा है।

राज्य में 3 सरकारी अस्पतालों में कैंसर के उपचार की सुविधा है। इसमें कामा अस्पताल मुंबई और औरंगाबाद के शासकीय मेडिकल कॉलेज तथा अस्पताल में कैंसर के उपचार की अत्याधुनिक लीनियर एक्सीलरेेटर और ब्रेकी थेरेपी 18-21 चैनल मशीन स्थापित की गई है।

कैंसर के उपचार की दो पद्धति
कैंसर को ठीक करने के लिए दाे तरीके से थेरेपी दी जाती है। पहले शरीर के बाहर के हिस्से के दी जाने वाली थेरेपी जिसमें कोबाल्ट और लीनियर एक्सीलरेटर मशीन का उपयोग किया जाता है। दूसरी पद्धति में शरीर के कैंसर सेल को थेरेपी देकर ठीक किया जाता है। इसके लिए ब्रेकी थैरेपी मशीन का उपयोग किया जाता है।

ब्रेकी थेरेपी 3 चैनल से होने वाला नुकसान
ब्रेकी थेरेपी 3 चैनल मशीन से सेंकने की सीमा है। इस मशीन से गर्भाशय और अन्न नलिका को सेंककर ठीक किया जा सकता है। इस पद्धति से सेंक देने की प्रक्रिया में कैंसर के सेल के साथ अन्य सेल भी प्रभावित होते हैं। जिसका शरीर पर नुकसान बढ़ जाता है।

ब्रेकी थेरेपी 18-21 चैनल के फायदे
ब्रेकी थेरेपी 18-21 चैनल मशीन अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित है। इस मशीन से जहां कैंसर है, उसी जगह सेंका जाता है। इसमें मुंह, मसल्स के ट्यूमर, जुबान आदि हिस्सों में इंटर इनप्लांट की सुविधा है। इस पद्धति से उपचार करने पर शरीर के अन्य सेल का नुकसान नहीं होता।

1000 मरीज सालभर में गंवाते हैं अच्छे सेल
शासकीय मेडिकल अस्पताल में सालभर में लगभग 1500 कैंसर के मरीज आते हैं। इसमें से लगभग 850 मरीजों को शरीर को कोबाल्ट मशीन से सेंका जाता है। एक मरीज पर 30 से 45 दिन यह उपचार किया जाता है। इसमें से कुछ मरीजों पर शरीर के अंदर के कैंसर सेल को ब्रेकी थेरेपी से उपचार दिया जाता है। सालभर में 350 से अधिक मरीजों पर ब्रेकी थेरेपी उपचार किया जाता है।

अच्छे सेल नष्ट होने से आती है कमजोरी
कोबाल्ट मशीन से काफी दूर से रेडिएशन देना पड़ता हैं। कैंसर के अतिरिक्त सामान्य सेल पर रेडिएशन का प्रभाव पड़ने से वह भी नष्ट हो जाते हैं, इससे मरीज कमजोर होता है और उसकी तकलीफ बढ़ जाती है। इसके मुकाबले एडवांस लीनियर एक्सीलरेटर मशीन से जहां कैंसर का प्रभाव है, उसी हिस्से में उपचार किया जा सकता है। इसमें सामान्य टिश्यू के नष्ट होने का खतरा नहीं रहता। ब्रेकी थेरेपी 3 चैनल गर्भाशय के कैंसर का उपचार के लिए उपयोगी है। इसके मुकाबले 18 से 20 या इससे अधिक चैनल वाली मशीन ज्यादा बेहतर है। एडवांस लीनियर एक्सीलरेेटर मशीन में भी शरीर के अंदर कैंसर के जख्म का उपचार करने की सुविधा है।
- डॉ. फखरुद्दीन, देश के ख्यात कैंसर विशेषज्ञ
 

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