बचपन को संवारना और अनोखा बनाना अभूतपूर्व कार्य : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा

बचपन को संवारना और अनोखा बनाना अभूतपूर्व कार्य : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा

Anita Peddulwar
Update: 2019-05-20 10:23 GMT
बचपन को संवारना और अनोखा बनाना अभूतपूर्व कार्य : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। "चिंता रहित खेलना खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद,कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद? मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी,
नंदन वन सी फूल उठी यह छोटी सी कुटिया मेरी"

सुभद्रा कुमारी चौहान की उपरोक्त चंद पंक्तियां हैं, जो आज के आनंद में पूरी तरह सही हैं। बाल कलाकरों के समूह बसोली ने 4 दशक से बचपन को सजाया और संवारा है। किसी के बचपन को सजाकर अनूठा और अनोखा बनाना अभूतपूर्व कार्य है। यह बात प्रमुख अतिथि डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा ने बसोली समूह के कार्यक्रम ‘रुजवा-फूलवा’ में कही। रविवार को साइंटिफिक सभागृह में बसोली समूह के 45 वर्ष पूरे होने पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अध्यक्षता दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे ने की। इस अवसर पर संस्था के संस्थापक चंद्रकांत चन्ने उपस्थित थे।

इनका हुआ सत्कार
कार्यक्रम में कला क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले बसोली के सदस्यों का सत्कार किया गया, साथ ही बसोली को शुरू करने वाले पूर्व 15 सदस्यों का भी सम्मान किया गया। इस अवसर पर डॉ. नाना साहब खारपाटे, राम इंगोले, एड. चंद्रशेखर कप्तान, गणेश नायडू, वर्षा मनोहर, केतकी गारे, श्रीकांत गडकरी, विलास माने, अब्दुल गफ्फार, मौक्तिक काटे, डॉ. चंद्रशेखर मेश्राम, कबीर लखमापुरे, अनीशा शर्मा, डॉ. सुधीर भावे, अनुज वड़बडे, प्रमोद रामटेके, ईश देहाडराय, विवेक गोखले, गौरव चाटी, महेश रायपुरकर, विक्रम फडके, डॉ. उदय बोधनकर, दीपलक्ष्मी भट, दिनकर पेेढेकर, उत्कर्ष वानखेड़े, प्रकाश एदलाबादकर का सत्कार किया गया। कार्यक्रम का सूत्र संचालन मंगेश बावसे और प्रकाश एदलाबादकर ने किया। बसोली के संस्थापक अध्यक्ष चंद्रकांत चन्ने ने प्रस्तावना रखी।

खान में से हीरा ढूंढ़ने जैसा है बच्चों में गुण पहचानना
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे ने कहा कि आजकल हर कोई स्वयं को ब्रह्मा समझता है। वह आत्मदीपो भाव पैदा करने की कोशिश करता है। आज हमारे शहर में कई ऐसी चीजें व स्थान हैं, जिनके बारे में किसी को जानकारी नहीं है। उन्होंने अब्राहम लिंकन का उदाहरण देते हुए कहा कि लिंकन जब राष्ट्रपति बने, तो उन्हें एक महिला ने कहा कि मैं आपके पिता काे जानती हूं, वह जूते साफ किया करते थे। इसके जवाब में लिंकन ने कहा कि मेरे पिता जूते पर एक भी दाग नहीं छोड़ते थे। मैं भी इस राष्ट्र के किसी भी हिस्से में कोई दाग नहीं लगने दूंगा, साथ ही यह भी कहा कि बच्चों में उनके गुण को पहचान कर उनमें उत्कृष्टता हासिल करना खान में से हीरे को तलाश कर उसे तराशने जैसा है।

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