मौत को मात देकर वन रक्षक कान्हा के कोर में कर रहा ड्यूटी - वन्यप्राणियों से बेहद प्यार 

मौत को मात देकर वन रक्षक कान्हा के कोर में कर रहा ड्यूटी - वन्यप्राणियों से बेहद प्यार 

Bhaskar Hindi
Update: 2019-12-23 09:30 GMT
मौत को मात देकर वन रक्षक कान्हा के कोर में कर रहा ड्यूटी - वन्यप्राणियों से बेहद प्यार 

वायसन के हमले मेंं फट गया था फेंफड़ा, बाहर आ गई थी आंत, स्वस्थ होते ही फिर संभाला मोर्चा 
डिजिटल डेस्क मंडला। वन ग्राम इंद्रा के महेश मरकाम का बचपन वन्यप्राणियों की बीच ही बीता है, महेश को वन्यप्राणियों से प्यार है। कान्हा में पोस्टिंग के दौरान वायसन के हमले से मौत के करीब पहुंच चुके वनरक्षक ने वन्यप्राणियों से दूरी नही बनाई, आज भी किसली में वन्यप्राणियों की देखरेख में ड्यूटी कर रहा है। वह खुद को वन्यप्राणियों से दूर नहीं करना चाहता है। 
जानकारी के मुताबिक महेश मरकाम कान्हा नेशनल पार्क में वर्ष 2003 से वनरक्षक के रूप मे काम कर रहे है। वन ग्राम के निवासी होने के कारण भी महेश को वन्यप्राणियों से काफी लगाव है। जिसके चलते उन्होने कोर एरिया कान्हा रेंज में ही वनप्राणियों की बीच ड्यूटी करने लगे। लेकिन वर्ष 2007 में वन्यप्राणियों के प्रति लगाव महेश को मौत के मुंह तक ले गया। अगस्त माह में वन्यप्राणियों की सामान्य गणना चल रही थी, महेश गणना में पैदल चल रहे थे, इसी दौरान पीछे से आकर वायसन ने हमला कर दिया। सींग सीधे पेट में जा घुसा। महेश का फेंफडा फट गया। 
इतना ही नहीं आंत बाहर आ गई। महेश जमीन पर गिर गया। महेश के साथ केंप वाचर महादेव था, महेश ने महादेव को वायरलेस पर वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करने के लिए गया। महोदव महेश को छोड़कर केंप तक आया। यहां तात्कालीन रेंजर सुधीर मिश्रा को जानकारी दी। जिसके बाद दल महेश की तलाश में निकला लेकिन महादेव घडबडाहट में घटना स्थल रही भूल गया। करीब 3 घंटे की तलाश के बाद घटना स्थल का सुराग मिला, तब तक महेश जिंदगी के लिए संघर्ष करता रहा। अधिकारियों के पहुंचने के बाद उसे जिला अस्पताल लाया गया। यहां गंभीर हालात के कारण जबलपुर रेफर कर दिया गया। कान्हा से जबलपुर तक के सफर में करीब 8 घंटे बीच गये। तब महेश को उपचार मिला। यहां सर्जरी के बाद महेश की जान बच पाई है। यहां चिकित्सक ने भी यही कहा था कि बचने की कोई उम्मीद नही थी, महेश को दूसरा जन्म मिला है। 
स्वस्थ होकर फिर कोर में ड्यूटी-

करीब ढ़ाई महिने तक महेश अस्पताल में रहा है। यहां से स्वस्थ होने के बाद महेश फिर डयूटी के लिए आ गया। महेश चाहते तो इस दुर्घटना के बाद कोर एरिया या आफिस में ड्यूटी कर सकते थे लेकिन वन्यप्राणियों से इनका प्यार इसके बाद भी कम नही हुआ। उन्होने किसली रेंज में ड्यूटी शुरू कर दी। घटना के दस साल हो गये है, जब कोई दूसरा सुनता तो रोंगटे खड़े हो जाते है लेकिन महेश घटना से बिल्कुल विचलित नही हुये। करीब 12 साल से कोर एरिया में सेवा दे रहे है। 
हर कोई करता है महेश की सराहना-
कान्हा नेशनल पार्क में महेश के साथ कार्य करने वाले सभी अधिकारी और कर्मचारी काम की सराहना करते है। कान्हा के कोर एरिया में ड्यूटी करना आसान नही है। यहां घने जंगल के बीच कोई भौतिक सुविधाएं नहीं मिलती है। मोबाइल टावर तक नही मिलता। लेकिन महेश जज्बे के साथ ड्यूटी कर रहे है। जिससे हर जगह तारीफ मिलती है। 
इनका कहना है 
जंगल के बीच ही जन्म लिया है, वन्यप्राणियों से लगाव है। कान्हा के कोर एरिया में सेवा करना अच्छा लगता है, घटना के बाद भी ऐसा कभी नहीं लगा कि कोर एरिया में ड्यूटी ना करू। 
महेश मरकाम, वनरक्षक 
महेश ड्यूटी के प्रति सजग कर्मी है, वायसन के हमले में घायल होने के कारण आंत बाहर आ गई थी, फेंफडा फट गया थी, तीन घंटे तक तलाश की इस बीच महेश जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करता रहा। इस घटना के बाद भी महेश ईमानदारी से सेवाएं दे रहा है। 
सुधीर मिश्रा, पार्क अधीक्षक कान्हा 
 

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