कर्ज चुकाने के लिए किडनी बेचने निकला बदहाल किसान

कर्ज चुकाने के लिए किडनी बेचने निकला बदहाल किसान

Anita Peddulwar
Update: 2018-03-30 05:19 GMT
कर्ज चुकाने के लिए किडनी बेचने निकला बदहाल किसान

डिजिटल डेस्क, नागपुर। किसानों की हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने वाले प्रशासन की पोल एक बार फिर खुली है।  एक किसान अपनी आधा एकड़ जमीन का सात-बारा लेने के लिए 12 वर्ष से प्रशासन का चक्कर काट रहा है। जब सुनवाई नहीं हुई, तो मंत्रालय तक गया। मंत्रालय से उसे जमीन मिलने की उम्मीद थी, परंतु प्रशासन अपनी बात पर अड़ा रहने से निराशा हाथ लगी। जमीन मिलने की आस में किसान की जमा-पूंजी खर्च हो गई। धंधे के लिए कर्ज लिया, वह भी खर्च हो गया। अब परिवार का भरण-पोषण और कर्ज लौटाने के लिए वह किडनी बेचने निकल पड़ा है।

प्रशासन ने झाड़ा पल्ला
वाकया उमरेड तहसील के मकरधोकड़ा गांव का है किसान का नाम पीड़ित किसान सागर मंदरे  है। उसकी 2.83 हेक्टेयर पैतृक जमीन थी। इसमें से पिता ने सन् 1989 में 85 आर, सन् 1994 में 97 आर और सन् 1995 में 81 आर जमीन तीन टुकड़ों में बेच डाली। अंत में 20 आर जमीन बची थी। इस जमीन का सात-बारा लेने के लिए सागर 12 वर्ष से सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है। पटवारी कार्यालय से लेकर विभागीय आयुक्त तक सभी से उसने गुहार लगाई। सन् 1983 के फेर नाप-जोख के रिकार्ड के आधार पर उसकी जमीन 2.62 हेक्टेयर बताकर सात-बारा देने से मना किया जा रहा है। पटवारी के मना करने पर उसने उपविभागीय अधिकारी उमरेड से गुहार लगाई। वहां से भी उसे खाली हाथ लौटा दिया गया। इसके बाद अपर आयुक्त के पास गया। अपर आयुक्त ने उपविभागीय अधिकारी के निर्णय को सही ठहराया। हर जगह से निराशा हाथ लगने पर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। 

मंत्रालय से भी नहीं मिला न्याय
सागर बड़ी उम्मीद लेकर मुंबई मंत्रालय  गया । न्याय की  गुहार लगाई। मंत्री के सामने अपनी बात रखी। दस्तावेजों की पड़ताल करने पर मंत्रालय ने जिलाधिकारी को इस प्रकरण की छानबीन कर सात-बारा देने की कार्रवाई करने के निर्देश दिए। मंत्रालय में मामले की सुध लिए जाने से आशा की किरण जगी थी, परंतु जिलाधिकारी द्वारा फेर नाप-जोख के दस्तावेजों को सही ठहराने से सात-बारा मिलने की आशा धूमिल हो गई। 20 आर (आधा एकड़) जमीन के लिए राजस्व विभाग के चक्कर काट रहा किसान मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। 4 साल पहले पाइप फिटिंग के धंधे के लिए बैंक से 2 लाख रुपए कर्ज लिया था। सरकारी दफ्तर का चक्कर काटते-काटते धंधा चौपट हो गया। जो कर्ज लिया था, उसे चुकाने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं बचा है। जो मजदूरी मिलती है, उसमें परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल हो रहा है। कर्ज चुकाने के लिए दूसरा कोई भी आर्थिक स्रोत नहीं है। निराश किसान ने अब परिवार का खर्च और कर्ज चुकाने के लिए किडनी बचने का निर्णय लिया है।

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