केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश नहीं मिलता और राज्य सरकार के स्कूल को छात्र नहीं मिलते

केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश नहीं मिलता और राज्य सरकार के स्कूल को छात्र नहीं मिलते

Bhaskar Hindi
Update: 2019-08-26 07:59 GMT
केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश नहीं मिलता और राज्य सरकार के स्कूल को छात्र नहीं मिलते

डिजिटल डेस्क, सीधी। ठीक अगल-बगल दो सरकारी स्कूल स्थित हैं किंतु दोनों में प्रवेश की स्थिति भिन्न है। एक में एडमीशन के लिये सांसद, मंत्री की सिफारिश चलती है तो दूसरे में बुलाने पर भी अभिभावक छात्रों का प्रवेश कराने नहीं पहुंचते हैं। प्रदेश सरकार के पाठ्यक्रम पर संचालित विद्यालय में अजा, अजजा तथा पिछड़ा वर्ग के छात्र प्रवेश न लें तो छात्रों की उपस्थिती न के बराबर ही रहे। शहर के उत्तरी करौंदिया के पश्चिमी छोर में स्थित शासकीय माध्यमिक विद्यालय खन्नौधा और उसी के बाजू में संचालित केन्द्रीय विद्यालय की स्थिति भिन्न पाई जा रही है। केन्द्रीय विद्यालय है तो हायरसेकेण्ड्री पर यहां पहली कक्षा में ही प्रवेश के लिये होड़ मची रहती है। केन्द्रीय कर्मचारियों के अलावा जिन रिक्त सीटों में प्रवेश दिया जाता है वहां प्रवेश पाना हर किसी अभिभावक के भाग्य में नहीं हेाता है। केन्द्रीय विद्यालय के उलट प्रदेश सरकार के अधीन माध्यमिक विद्यालय खन्नौधा में छात्रों के प्रवेश को लेकर शिक्षक अभिभावकों से आरजू मिन्नत करते रहते हैं किंतु इसके बाद भी कम संख्या में ही छात्र प्रवेश लेने तैयार देखे जाते हैं। अजा, अजजा, पिछड़ा वर्ग के छात्रों को किनारे कर दिया जाय तो इस तरह के सरकारी विद्यालयों में सामान्य वर्ग के बच्चे न के बराबर ही पाये जाते हैं। बता दें कि माध्यमिक स्तर के खन्नौधा विद्यालय में 18 अजा, 32 अजजा, 26 पिछड़ा वर्ग तो 3 सामान्य वर्ग के छात्र पढ़ रहे हैं। इसी तरह पहली से पाचवीं तक की कक्षा में अजा वर्ग के 12, अजजा वर्ग के 35, पिछड़ा वर्ग के 15 और सामान्य वर्ग के 1 छात्र ने प्रवेश ले रखा है। विद्यालय में पढऩे वाले कुल छात्र संख्या डेढ़ सैकड़ा के आंकड़े केा भी नहीं छू पाई है। 

शाम को लगती है पियक्कड़ों की जमघट

खन्नौधा विद्यालय में बाउण्ड्रीवाल नहीं है। मुख्य सड़क से शहर की ओर जाने वाली सड़क विद्यालय के ठीक सामने से ही गुजरती है। इसीलिये वाहनों की आवाजाही दिन भर लगी रहती है। स्कूल से छूटने के बाद अक्सर बच्चे सड़क की ओर ही भागते हैं। ऐसे में दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है। बाउण्ड्रीवाल न होने के कारण पियक्कड़ों का जमघट भी शाम के समय स्कूल परिसर में ही लगा करता है। विद्यालय के शिक्षकों को सुबह स्कूल आने पर तब पता चलता है जब यहां-वहां शराब की बोतलें और डिस्पोजल ग्लास समेटकर बाहर फेंकना पड़ता है। विद्यालय में छात्र छात्राओं के लिये बनाया गया शौचालय भी सुरक्षित नहीं पाया जा रहा है। यहां भी अक्सर बाहरी लोग विद्यालय बंद होने के बाद गंदगी करके चलते बनते हैं।

मध्यान्ह भोजन के लिये पहले करनी पड़ती है छुट्टी

नगरपालिका द्वारा संचालित मध्यान्ह भोजन मध्यावकाश के समय कम ही पहुंच पाता है। अक्सर मध्यावकाश के पहले ही भोजन लिये वाहन पहुंचता है जिसे दूसरे स्कृूलों में जाने की हड़बड़ी रहती है इसीलिये अवकाश के पहले ही बच्चों को भोजन के लिये छोडऩा पड़ता है। प्रधानाध्यापक के सख्ती का ही कुछ असर दिखा है वरना मध्यान्ह भोजन किसी भी समय वितरित होने पहुंच जाता रहा है। अब इतना जरूर है कि मध्यावकाश के 15-20 मिनट पहले पहुंचने लगा है। शहर के दर्जनों विद्यालयों में एक ही व्यवस्था के तहत मध्यान्ह भोजन वितरित कराये जाने से गर्मागर्म भोजन की कोई गारंटी नहीं रह गई है। दाल, सब्जी में पानी की मात्रा भरपूर न हो ऐसा भी कभी नही हुआ है। मजबूरी में गरीब वर्ग के छात्रों को गुणवत्ताविहीन मध्यान्ह भोजन लेना पड़ रहा है। 
 

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