रिश्वत मांगने वाली मजिस्ट्रेट को जमानत से इंकार, हाईकोर्ट ने कहा- जांच के लिए हिरासत जरूरी

रिश्वत मांगने वाली मजिस्ट्रेट को जमानत से इंकार, हाईकोर्ट ने कहा- जांच के लिए हिरासत जरूरी

Tejinder Singh
Update: 2021-03-07 10:38 GMT
रिश्वत मांगने वाली मजिस्ट्रेट को जमानत से इंकार, हाईकोर्ट ने कहा- जांच के लिए हिरासत जरूरी

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने घूसखोरी के कथित मामले में आरोपी पुणे इलाके की एक ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया है। मामले में आरोपी मैजिस्ट्रेट अर्चना जटकर पर एक दूध विक्रेता के मामले के निपटारे को लेकर अपने एक सहयोगी के मार्फत घूस मांगने व स्वीकार का आरोप है। 

दूध विक्रेता स्वप्निल शिवेकर से पहले घूस के रुप मे पांच लाख रुपए की मांग की गई थी। लेकिन बाद में मैजिस्ट्रेट की सहयोगी शुभावरी गायकवाड़ से तीन लाख रुपए में बात तय हुई। पर शिवेकर ने 14 जनवरी 2021 को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी)  से मामले की शिकायत कर दी। इसके बाद एसीबी ने गायकवाड़ को कार में रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर लिया। 

गायकवाड़ से पूछताछ में मैजिस्ट्रेट के नाम का खुलासा हुआ। मामले में गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए मैजिस्ट्रेट जटकर ने पुणे कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया। निचली अदालत से जमानत न मिलने के बाद पुणे के मावल इलाके की मैजिस्ट्रेट जटकर ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन किया। आवेदन में मैजिस्ट्रेट ने कहा था कि उसकी इस मामले में कोई भूमिका नहीं है। वह पुणे में अपने 11 महीने के बच्चे के साथ अकेली रहती है। उसके पति मुंबई में कार्यरत हैं। उसने अपने बच्चे की देखभाल के लिए गायकवाड़ को रखा था। गायकवाड़ से उसका कोई और संबंध नहीं है। 

न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल के सामने इस जमानत आवेदन पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि गायकवाड़ व मैजिस्ट्रेट के बीच 147 बार फोन पर बातचीत हुई है। जो अपने आप में मैजिस्ट्रेट की मामले में संलिप्तता के संकेत देते हैं। मैजिस्ट्रेट पर गंभीर आरोप है। जिनकी गहराई से जांच के लिए और मामले से जुड़े सच का पता लगाने के लिए आरोपी मैजिस्ट्रेट को हिरासत में लेकर पूछताछ किया जाना जरूरी है। इसलिए आरोपी के हिरासत आवेदन को खारिज किया जाता है। 

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