इस अजीब बीमारी से जूझ रही महिमा, लेकिन पढ़ाई व कला में हैअव्वल

इस अजीब बीमारी से जूझ रही महिमा, लेकिन पढ़ाई व कला में हैअव्वल

Bhaskar Hindi
Update: 2017-12-02 12:12 GMT
इस अजीब बीमारी से जूझ रही महिमा, लेकिन पढ़ाई व कला में हैअव्वल

डिजिटल डेस्क मंडला। शारीरिक नि:शक्तता जिंदगी में रोड़़ा नहीं बन सकती। शारीरिक कमजोरी खुशियां नहीं छीन सकती। हौंसले और आत्मविश्वास से जिंदगी की जंग लड़ी जा सकती है। भगत सिंह वार्ड की 19 वर्षीय महिमा पटेल दिव्यांगों के लिए प्रेरणा है। गंभीर बीमारी से शरीर रस्सी की ऐंठ गया है लेकिन हौंसले से महिमा हंस कर जिंदगी की जंग लड़ रही है। चलने, बैठने और खड़े होने में भी सक्षम न होने के बावजूद पढ़ाई और अपनी शौक को पूरा कर रही है। महिमा के चेहरे पर सिकन है न शिकवा। बीमारी की परिस्थितियों से भली भांती अवगत होने के बावजूद उसने उस हाल में जीना सीख लिया है।
जानकारी के मुताबिक महिमा पटैल पिता विनय कुमार पटेल 19 वर्ष निवासी भगत सिंह वार्ड मस्कुलर डिस्ट्रोफी नामक गंभीर बीमारी की चपेट में है। इसके कारण महिमा दस साल की उम्र में दिव्यांग की श्रेणी में आ गई। महिमा के शरीर की मासपेशियां कमजोर हो गई। हड्डियां और मांसपेशियां रस्सी की तरह उमड़ चुकी है। मांसपेशियों के विकृत होने के बाद महिमा का सिर्फ चेहरा सेफ है। गर्दन, कमर, और पैरों की अस्थियां पूरी तरह मुड़ चुकी है। जिससे महिमा बैठने, उठने में असमर्थ हो चुकी है।
नागपुर, जबलपुर, औंरगाबाद समेत बड़े शहरों में परिजन इलाज करा चुके है लेकिन चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए है। जैसे-जैसे महिमा की उम्र बढ़ रही है। मांसपेशियां दिनोदिन कमजोर होती जा रही है। महिमा को गंभीर बीमार के संबंध में पूरी जानकारी है लेकिन वह इससे निराश नहीं है। इस लाइलाज बीमारी की चपेट में आने के बावजूद हौंसले और आत्मविश्वास के बलबूते पर वह जिंदगी की जंग लड़ रही है। महिमा दिव्यांगो के लिए प्रेरणा है। शारीरिक अशक्तता के बावजूद महिमा हर हाल में खुश है। दिव्यांग महिमा से प्रेरित होकर अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकते है।
नहीं छोड़ी पढ़ाई
शारीरिक रूप से नि:शक्त होने के बावजूद महिमा पढ़ लिखकर जॉब करना चाहती है। उसने पढ़ाई अपनी जारी रखी है। दसवीं की परीक्षा ओपन से दे रही है। दस साल की उम्र में शारीरिक कमजोरी के कारण रेग्युलर पढ़ाई छूट गई लेकिन असहनीय दर्द और तकलीफ के बावजूद उसने पढऩा नहीं छोड़ा। पांचवी, आठवीं परीक्षा के बाद अब दसवीं की परीक्षा दे रही है। महिमा बताती है कि उसे कम्प्यूटर की शिक्षा लेनी है। जिससे सरकारी जॉब कर सके।
बना रही आकर्षक सजावटी सामग्री
महिमा हॉवी के चलते सजावटी साम्रगी तैयार करती है। महिमा के हाथों से बने फ्लावर पोर्ट, बैंगल बॉक्स, दीपक व अन्य सामग्रियां आकर्षक का केन्द्र है। वर्ष 2016 में 26 से 28 अक्टूबर को शिल्पीदीप मेले का आयोजन नगरपालिका में आयोजित किया गया था। इसमें महिमा की डेकोरेट सामग्रियां सराही गई थी। इस मेले में महिमा को सम्मानित भी किया गया था।
नहीं मिली सरकारी मदद
गंभीर बीमारी और दिव्यांग की जिंदगी जी रही महिमा को किसी भी तरह की अभी तक सरकारी मदद नहीं मिली है। दिव्यांग का प्रमाण पत्र भी 40 प्रतिशत का बना हुआ है। शासन की पेंशन योजना का लाभ 19 वर्षीय होनहार महिमा को नहीं मिल रहा है। जिससे शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन का अंदाजा लगाया जा सकता है। शासन द्वारा समय समय पर कराया जा रहे सर्वे में महिमा हर बार छूट गई।
क्या है मस्कुलर डिस्ट्रोफी
पेशीय दुर्विकास मस्कुलर डिस्ट्रोफी का शाब्दिक अर्थ होता है शक्ति क्षीण होना या पेशीय अपक्षय। पेशीय दुर्विकास आनुवांशिक रोगों का समूह है जिसमें क्रमिक अंदाज में कमजोरी आती जाती है  और गति को नियंत्रित करने वाली कंकालीय पेशियां स्केलेटल मसल्स छीजती जाती हैं। पेशीय दुर्विकास की शुरुआत चाहे जब भी हो लेकिन उनमें से कुछ चलने.फिरने की असमर्थता या यहां तक कि लकवा पैदा करती हैं। इसकी शुरुआत उसे 5 साल की उम्र में होती है और बहुत तेजी से बढ़ता है। अधिकतर लड़के 12 की उम्र में चलने.फिरने में असमर्थ हो जाते हैं और 20 साल की उम्र तक पहुंचते.पहुंचते सांस लेने के लिए उन्हें श्वास यंत्र की आवश्यकता पड़ जाती है।

 

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