फॉरेंसिक साइंस में कई कमियां, समिति को सालभर में करने होंगे जरूरी बदलाव

फॉरेंसिक साइंस में कई कमियां, समिति को सालभर में करने होंगे जरूरी बदलाव

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-01 18:15 GMT
फॉरेंसिक साइंस में कई कमियां, समिति को सालभर में करने होंगे जरूरी बदलाव

डिजिटल डेस्क, नागपुर। डॉ. इंद्रजीत खंडेकर ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में जनहित याचिका दायर कर देश में फॉरेंसिक साइंस के विकास का मुद्दा उठाया था। उन्होंने इस क्षेत्र की विविध खामियों का अध्ययन करके समाधान जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में प्रस्तुत किए थे। इसका संज्ञान लेकर बुधवार को नागपुर खंडपीठ ने आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग सचिव की अध्यक्षता में केंद्रीय व प्रदेश स्वास्थ्य विभाग, भारतीय वैद्यक परिषद, महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस नासिक के प्रतिनिधियों के सहभाग से समिति गठित करने के आदेश दिए हैं। समिति को डॉ. खांडेकर द्वारा प्रस्तुत उपायों पर अमल करके एक वर्ष में उन्हें लागू करना होगा। याचिकाकर्ता की ओर से एड. विजय पटाईत ने पक्ष रखा।

यहां है कमी

याचिकाकर्ता के अनुसार महाराष्ट्र और देशभर में पोस्टमॉर्टम और अन्य कार्यों से जुड़े फॉरेंसिक साइंस के तंत्र में कई कमियां हैं। उनके अनुसार एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान विद्यार्थियों को पोस्टमॉर्टम का कोई प्रैक्टिकल ज्ञान नहीं होता। कई बार ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी नियुक्ति के बाद जब वे कोई पोस्टमार्टम करते हैं, तो वह उनका पहला पोस्टमॉर्टम होता है। इसी तरह प्रैक्टिकल ज्ञान नहीं होने से कई बार पी.एम रिपोर्ट में कई खामियां होती हैं, जिससे अनेक बार अपराधी छूट जाते हैं। उन्होंने इस दिशा में विविध सरकारी समितियों की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है।


फारेंसिक साइंस में ये सुधार आवश्य

डॉ. खांडेकर द्वारा प्रस्तुत सुझावों के अनुसार देश में एक स्वतंत्र फॉरेंसिक साइंस विभाग की स्थापना होनी चाहिए। फॉरेंसिक साइंस की डिग्री, डिप्लोमा प्राप्त नहीं करने वाले चिकित्सकों को पोस्टमॉर्टम नहीं करने देना चाहिए। उन्होंने मौजूदा एमबीबीएस पाठ्यक्रम में जरूरी बदलाव करने, सेवा दे रहे चिकित्सकों के लिए 6 माह के ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित करने के सुझाव दिए हैं। अपनी एक अन्य याचिका में डॉ. खांडेकर ने हाथ से लिखी जाने वाली पीएम या अन्य फारेंसिक रिपोर्ट का भी विरोध किया है। उन्होंने सॉफ्टवेयर से तैयार रिपोर्ट को वैध ठहराने की प्रार्थना कोर्ट से की है। इस पर हाईकोर्ट ने सरकार को 6 माह में सॉफ्टवेयर रिपोर्ट ही वैध ठहराने के आदेश दिए हैं। 

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