जिपं अध्यक्ष का निर्वाचन शून्य करने की याचिका में देरी, HC ने लगाई फटकार

जिपं अध्यक्ष का निर्वाचन शून्य करने की याचिका में देरी, HC ने लगाई फटकार

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-07 07:49 GMT
जिपं अध्यक्ष का निर्वाचन शून्य करने की याचिका में देरी, HC ने लगाई फटकार

डिजिटल डेस्क, सीधी। जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन शून्य करने कमिश्नर रीवा के यहां लगाये गए आवेदन में हीलाहवाली करने पर मप्र हाईकोर्ट ने फटकार लगाते हुए 45 दिन के भीतर निराकरण का आदेश दिया है। कमिश्नर कार्यालय में दो वर्ष से मामला अटका हुआ है।

उल्लेखनीय है कि जिला पंचायत अध्यक्ष अभ्युदय सिंह का निर्वाचन शून्य करने राजबहादुर सिंह चौहान निवासी मड़वास द्वारा कमिश्नर रीवा के यहां चुनाव याचिका क्रमांक 239/ याचिका/ 015-016 प्रस्तुत की गई थी। प्रस्तुत याचिका में आरोप लगाया गया है कि जिपं अध्यक्ष ने अपने निर्वाचन के दौरान प्रस्तुत शपथ पत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई है। जैसे उनके पास आर्म्स लायसेंस है उसे शपथ पत्र में नहीं दिया गया है। इसके अलावा मकान, जमीन संबंधी जानकारी भी नहीं दी गई है। कई अन्य महत्वपूर्ण जानकारी जिन्हें चुनाव के समय शपथ पत्र में दिया जाना चाहिए था, लेकिन उपलब्ध नहीं कराया गया है। यहां तक कि शपथ पत्र में नोटरी के हस्ताक्षर और जिपं अध्यक्ष के हस्ताक्षर दिनांक में भी काफी अंतर देखा जा रहा है।

दो वर्ष पहले कमिश्नर कार्यालय में दायर याचिका पर किसी तरह की सुनवाई नहीं हुई है। आरोप है कि जिपं अध्यक्ष ने दवाब देकर कार्रवाई को रोक रखा था। इसीलिए फरियादी राजबहादुर सिंह ने हाईकोर्ट जबलपुर में पिटिशन फाइल पर उक्त प्रकरण में फैसला कराने निवेदन किया गया था। जिस पर उच्च न्यायालय ने गंभीरता से लेते हुए प्रकरण क्र. डब्ल्यूपी 14105/ 018 आदेश दिनांक 4 जुलाई 18 को अपर कमिश्नर रीवा को 45 दिन के भीतर निराकरण करने का आदेश जारी किया है।

फरियादी के अनुसार यदि उक्त याचिका पर कमिश्नर रीवा द्वारा फैसला सुनाया गया तो अध्यक्ष की कुर्सी जाना तय ही है। बता दें कि जिपं अध्यक्ष के खिलाफ मझौली न्यायालय में भी भोजमुक्त परीक्षा में दूसरे से कापी लिखाने का मामला चल रहा है। न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक को राइटिंग प्रूफ कराने निर्देशित किया हुआ है। इसके अलावा जिला पंचायत में भी अध्यक्ष द्वारा अधोसंरचना मद के कार्यों का अनुमोदन करने के संबंध में हस्ताक्षर न होने की जानकारी देने के बाद हस्ताक्षर की जांच कराई जा रही है। कुल मिलाकर मड़वास रेल आंदोलन को लेकर चर्चा में आए जिपं अध्यक्ष चौतरफा घिरते जा रहे हैं। कमिश्नर कार्यालय में दवाब देकर फैसला रोके रहने के कारण हाईकोर्ट में लगाई गई याचिका के बाद जारी निर्देश से तो और भी मुसीबत गहरा गई है।

 

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