नागपुर की माझी मेट्रो भी हांगकांग की तरह मुनाफे में रहेगी - बृजेश दीक्षित

नागपुर की माझी मेट्रो भी हांगकांग की तरह मुनाफे में रहेगी - बृजेश दीक्षित

Anita Peddulwar
Update: 2019-09-06 08:01 GMT
नागपुर की माझी मेट्रो भी हांगकांग की तरह मुनाफे में रहेगी - बृजेश दीक्षित

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर देश का आठवां मेट्रो शहर बनने जा रहा है, जहां निर्धारित समय से पूर्व एवं 15 प्रतिशत कम खर्च में मेट्रो प्रकल्प पूरा होने जा रहा है। महामेट्रो के व्यवस्थापकीय संचालक बृजेश दीक्षित ने  बताया कि 50 माह में 25 किमी सृजन का मेट्रो का अपने आप में एक इतिहास है। जनवरी 2020 तक नागपुर के 38 स्टेशन काम करने लगेंगे। 10 हजार करोड़ के इस प्रकल्प को 8600 करोड़ में पूरा कर लिया जाएगा। इसमें से 5800 करोड़ अब तक खर्च हो चुके हैं। प्रति दिन 10,000 लोगा अहर्निश काम कर रहे हैं। श्री दीक्षित ने बताया कि दुनिया में एकमात्र हांगकांग मेट्रो ही ऐसी है, जो मुनाफे में चल रही है। सब कुछ ठीक रहा तो नागपुर की माझी मेट्रो भी हांगकांग के बाद मुनाफे में रहेगी।

आय के अन्य रास्ते भी खोजे हैं

उन्होंने बताया कि मात्र किराए से मेट्रो का खर्च चलाने के बजाय हमने अन्यान्य मार्ग खोजे हैं, जिससे मेट्रो को अतिरिक्त आय होने लगेगी। मेट्रो के फायदे गिनाते हुए दीक्षित ने बताया शहर के सभी छोर पर रहनेवाले लोग अपने कार्य स्थल पर जाने के लिए  20-20 किमी जान जोखिम में डालकर चलते हैं, इससे उन्हें निजात मिलेगी। उनके परिवार के लोग शिक्षा एवं उपचार के लिए भी वाहन का उपयोग करते हैं। इसमें उनकी कुल आमदनी का 40 प्रतिशत पेट्रोल आदि पर खर्च हो जाता है, उसकी बचत होगी। बहुत सारे लोग सड़क दुर्घटनाओं से बचेंगे। टी.ओ.डी. में मेट्रो के दोनों छोर पर 500 मीटर की दूरी पर अतिरिक्त एफएसआई मिल पाएगा। 31 मई 2015 को हुए भूमिपूजन के बाद लगातार कार्य जारी रहा। 7-8 बड़े मुकदमों का हमें सामना करना पड़ा। सितंबर 2017 में ट्रायल रन एवं 7 मार्च 2019 में एक नियमित मेट्रो संचालन कर देखा गया। 

साकार हो रही संकल्पना

मेट्रो की अनेक विशेषताएं गिनाते हुए श्री दीक्षित ने बताया कि ख्वाब से भी खूबसूरत बन रही है नागपुर की मेट्रो रेल, जिसमें जान की सुरक्षा, पर्यावरण की रक्षा, ईंधन खर्च में बचत एवं बेहतर स्वास्थ्य की संकल्पना साकार होने जा रही है। 

विरोध का भी सामना

दीक्षित के जिम्मे नागपुर के अलावा नाशिक, ठाणे व पुणे का दायित्व भी आता है। उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि कहीं-कहीं िवरोध का सामना भी करना पड़ा। पक्के इमारतें भी तोड़नी पड़ीं, किंतु प्रकल्प के लिए स्वीकृति एवं धन की कमी कभी नहीं रही।  

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