श्राद्ध कर्म में तिल का उपयोग करने से प्रसन्न होते हैं पितर, तिल के बिना अधूरा है तर्पण
श्राद्ध कर्म में तिल का उपयोग करने से प्रसन्न होते हैं पितर, तिल के बिना अधूरा है तर्पण
डिजिटल डेस्क जबलपुर । तिल के बिना पितरों को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। इसलिए श्राद्ध के दौरान तर्पण और पिण्डदान में तिल का इस्तेमाल होता है। धार्मिक नजरिये से तो तिल खास है ही इनका आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। काले और सफेद दोनों तरह के तिल का उपयोग पूजा-पाठ, व्रत और औषधि के तौर पर किया जाता है। पं. रोहित दुबे ने बताया कि पद््म पुराण में तो कहा गया है कि तिल जिस पानी में होता है वो अमृत से भी ज्यादा स्वादिष्ट हो जाता है। इसके साथ ही 5 अन्य पुराणों में भी तिल का महत्व बताया गया है। इसके अलावा आयुर्वेद के मुताबिक तिल के तेल से मालिश करने और तिल मिले हुए पानी से नहाने से बीमारियाँ खत्म होती हैं। पं. वासुदेव शास्त्री ने बताया कि पुराणों में तिल को औषधि बताया गया है। पितृकर्म में जितने तिलों का उपयोग होता है उतने ही हजार सालों तक पितर स्वर्ग में रहते हैं। श्राद्ध कर्म में काले तिलों का उपयोग करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। जिन पूर्वजों की मृत्यु अचानक या किसी दुर्घटना में हुई हो उनके लिए तिल और गंगाजल से तर्पण किया जाए तो उन्हें मुक्ति मिलती है। पं. राजकुमार शर्मा शास्त्री के अनुसार आयुर्वेद और विज्ञान में बताया गया है कि तिल का उपयोग करने से बीमारियों से लडऩे की ताकत बढ़ती है। आयुर्वेद के अनुसार तिल मिले पानी से नहाने और तिल के तेल से मालिश करने पर हड्डियाँ मजबूत होती हैं। स्किन में चमक आती है और मसल्स भी मजबूत होते हैं। तिल वाला पानी पीने से कई बीमारियाँ दूर होती हैं। एक रिसर्च में बताया गया है कि काले तिल में एंटी ऑक्सीडेंट होता है। जिससे शरीर में नई कोशिकाएँ और ऊतक बनने लगते हैं।
इसके साथ ही तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे बहुत ज्यादा होते हैं। ये सारी चीजें जोड़ों के दर्द दूर करती हैं और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में मदद करती हैं।