शहरी नक्सलवाद : पुलिस के पास है गोपनीय लिस्ट और समर्थकों की भी है जानकारी

शहरी नक्सलवाद : पुलिस के पास है गोपनीय लिस्ट और समर्थकों की भी है जानकारी

Anita Peddulwar
Update: 2018-09-08 11:00 GMT
शहरी नक्सलवाद : पुलिस के पास है गोपनीय लिस्ट और समर्थकों की भी है जानकारी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। उपराजधानी अनेक वर्षों से अर्बन नक्सलियों की गतिविधियों का केंद्र रही है। समय-समय पर यहां की सक्रिय पुलिस एवं नक्सल विरोधी अभियान ने नक्सलियों के मंसूबों को ध्वस्त करते हुए कई कार्रवाईयों को अंजाम देकर गिरफ्तारियां तथा हथियारों को जब्त करने में कामयाबी हासिल की है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुलिस ने यहां सक्रिय नक्सलियों आैर उनके समर्थकों की एक गोपनीय लिस्ट तैयारी की है। जिसके आधार पर  निगरानी की जा रही है।

नागपुर समेत विविध शहरों के विश्वविद्यालय, कॉलेज और कुछ इलाकों में नक्सलियों के थिंक टैंक कहे जाने वाले समर्थकों की हर मामूली गतिविधियों पर पुलिस की कड़ी नजर है। दूसरी ओर सरकार द्वारा वर्ष 2005 से चलाए जा रहे कल्याणकारी नक्सल आत्मसमर्पण योजना के चलते जंगलों की खाक छानने वाले खूंखार 625 बंदूकधारी नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। पुलिस की इस कामयाबी से नक्सलवाद की रीढ़ टूट चुकी है । नक्सलियों की हिंसक वारदातों में भी काफी कमी देखी जा रही है।

नक्सलबाड़ी से हुआ उगम
नक्सल शब्द का उगम पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से हुआ है। 1967 में सशस्त्र आंदोलन के माध्यम से वे भूमिगत होकर लड़ने लगे। गुरिल्ला तंत्र का उपयोग कर सरकार व सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना इनका मकसद बन गया। किसान व मजदूरों को पीड़ित बताकर सरकार के खिलाफ बरगलाने और उन्हें इस हिंसक आंदोलन में जोड़ने की कवायद की जाती है। सरकार अब इसे गंभीरता से ले रही है। ऐसे में शहरी नक्सलवाद एक नई चुनौती बनकर सामने आया है। इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 16 राज्यों में नक्सलियों की 128 फ्रंटल संस्थाएं कार्यरत हैं।      

1980 में गड़चिरोली में दाखिल हुए नक्सली
पश्चिम बंगाल में 1967 के दौरान नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ नक्सल आंदोलन महाराष्ट्र के गड़चिरोली जिले में 1980 के दौर में दाखिल हुआ। घने जंगलों एवं आदिवासी बहुल क्षेत्र के अशिक्षित युवाओं को बरगलाकर आंध्रप्रदेश से आए नक्सलियों ने उन्हें हथियार थमा दिए। तब से यह आंदोलन जंगल व सुदूर इलाकों में फैल चुका है। गड़चिरोली के अलावा, गोंदिया जिले के कुछ इलाकों में, चंद्रपुर तथा यवतमाल के चंद क्षेत्रों में छुट-पुट तौर पर इनकी गतिविधियों को देखा गया है। जब से पुलिस विभाग ने नक्सल विरोधी अभियान के तहत सी-60 का गठन कर जांबाज जवानों को नक्सलियों के खात्मे के लिए विशेष तौर पर ट्रेंड किया, तब से हिंसक वारदातों में बरस-दर-बरस कमी देखी जा रही है।

जरूरत पड़ने पर आते हैं शहरों की ओर
पूर्व विदर्भ के घने जंगलों में सक्रिय बंदूकधारी नक्सली जब बीमार हो जाते हैं, तो वे अपना इलाज पास के छोटे शहरों अथवा नागपुर में शरण लेते हैं और पहले से ही उनके समर्थक अर्बन नक्सली इन्हें सुविधाएं मुहैया कराते हैं, यह बात अनेक बार उजागर हुई है। नागपुर के सरकारी अस्पतालों में नक्सली खुद का इलाज कराने की खुफिया जानकारी संबंधित विभाग के पास उपलब्ध है। वहीं अनेक तरह के हथियार बनाने का प्रशिक्षण ले चुके नक्सलियों को जब घरेलू बंदूक व बम की सामग्री, दवाएं, रेडियो आदि की आवश्यकता होती है तो वे शहरों का रुख करते हैं।

सरकार की आत्मसमर्पण योजना से बौखलाए
सरकार की आत्मसमर्पण योजना से नक्सली बौखला गए हैं। अब वे अर्बन नक्सलवाद पर ध्यान केंद्रित करने की जानकारी है। 29 अगस्त 2005 को सरकार ने आत्मसमर्पण योजना शुरू की। राज्य के गड़चिरोली, गोंदिया, चंद्रपुर एवं यवतमाल जिलों से अब तक 625 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। जिसमें एक दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सदस्य, 6 डिविजनल कमेटी के सदस्य, 25 कमांडर, 29 उप-कमांडर, 315 दलम सदस्य, 115 ग्राम रक्षक दल सदस्य, 124 संगम सदस्यों का समावेश है। इससे नक्सलवाद को गहरा आघात पहुंचा है।

शहरी चेहरा तब हुआ उजागर
नागपुर की पुलिस ने वर्ष 2007 में एक आला दर्जे के खूंखार नक्सली मुरली उर्फ महेश रेड्‌डी को उसके 3 साथियों धनंजय बुरले, नरेश बंसोड तथा अरुण कुमार के साथ दीक्षाभूमि परिसर से गिरफ्तार किया था। इस दौरान एक पिस्तौल, पुलिस अधिकारियों की तस्वीरें तथा नक्सल सामग्री जब्त की गई थी। तब से नक्सलवाद का शहरी चेहरा पुलिस ने उजागर कर जनता को सचेत किया है।

बड़े शहरों से जुड़े हैं तार
पुणे व नागपुर जैसे शहरों में नक्सलियों के अनेक समर्थक कार्यरत हैं। इनके विविध फ्रंट ऑर्गनाइजेशन समाज के विविध अंगों में घुल-मिलकर कार्य कर रहे हैं। यह लोग विश्वविद्यालय, कॉलेज एवं कुछ चुनिंदा इलाकों को लक्ष्य बनाकर वहां अपनी गतिविधियां चलाते हैं। पुलिस की इनकी हर गतिविधि पर कड़ी नजर है। शहर में बैठकर यह लोग नक्सलवाद के समर्थन में काम रहे हैं। इनके मंसूबों को पुलिस कतई कामयाब नहीं होने देगी।
(महेंद्र पंडित, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, गड़चिरोली)

लिस्ट है हमारे पास

हमारे पास गोपनीय जानकारी है, जिस पर काम कर रहे हैं। नागपुर व आस-पास के नक्सलियों से जुड़े लोगों की गोपनीय जानकारी और उससे जुड़ी सूची हमारे पास है, जिस पर हम काम कर रहे हैं। यहां इलाज करवाने से लेकर कई तरह के कामों के लिए नक्सली आते हैं। हम लगातार नजर रख रहे हैं। 
(डॉ. भूषण कुमार उपाध्याय, पुलिस आयुक्त)

तेंदूपत्ता यूनिटों की नीलामी से वसूलते हैं फिरौती

सीजन के समय जंगलों में तेंदूपत्ता यूनिटों की नीलामी के बाद ठेकेदारों से बड़े पैमाने पर फिरौती वसूल की जाती है। जंगल से बांस व खनिज जैसे संसाधनों को ट्रकों में लादकर शहर ले जाने वाले उद्योगों से भी लाखों-करोड़ों की फिरौती वसूलने के प्रमाण पुलिस के पास उपलब्ध है। धन उगाही व हथियारों की सप्लाई से जुड़े कुछ मामलों में जब गड़चिरोली जिले की पुलिस ने बीते वर्षाें में अनेक कठोर कार्रवाई की तो नक्सलियों से जुड़े शहर के तार उजागर हुए। कुछ मामले तो न्यायालयों में न्यायप्रविष्ट है। 
  

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