विद्यार्थी विश्व में ‘हिंदी का राजदूत’ बनकर प्रसिद्ध हो, ऐसी स्थिति निर्माण करने की जरूरत- शुक्ल

विद्यार्थी विश्व में ‘हिंदी का राजदूत’ बनकर प्रसिद्ध हो, ऐसी स्थिति निर्माण करने की जरूरत- शुक्ल

Anita Peddulwar
Update: 2019-04-25 05:47 GMT
विद्यार्थी विश्व में ‘हिंदी का राजदूत’ बनकर प्रसिद्ध हो, ऐसी स्थिति निर्माण करने की जरूरत- शुक्ल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में अंग्रेजी का बोलबाला है। हिंदी जरा पिछड़ती नजर आती है। युवाओं के एक बड़े वर्ग का हिंदी के प्रति मोहभंग हुआ है। हम इसे बदल कर ऐसी स्थिति लाना चाहते है कि हिंदी दुनिया की जुबान पर चढ़ जाए। हमारे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करके निकले छात्र विश्व में हिंदी के राजदूत बन कर स्थापित हों, ऐसी स्थिति हमें निर्माण करनी है। यह कहना है विवि के नए कुलपति प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल का। ‌वे  दैनिक भास्कर के संपादकीय सहयोगियों से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने हिंदी को लेकर संजोए गए सपने, वर्तमान स्थिति और इसके भविष्य पर बात की। कहा कि आज के दौर में हिंदी के प्रति वैश्विक निष्ठा जरा कम नजर आती है। यदि हिंदी को विज्ञान और तकनीक की भाषा के रूप में विकसित किया जाता तो आज स्थिति कुछ और होती। 

नए शब्दों को प्रोत्साहन
श्री शुक्ल ने कहा कि हमारा उद्देश्य विश्वविद्यालय को विश्व स्तरीय हिंदी संशोधन स्रोत के रूप में स्थापित करना है और इसके लिए विवि प्रशासन, के साथ-साथ शिक्षकों और विद्यार्थियों को एक समूह के रूप में काम करना होगा। पाठ्यसामग्री को ज्यादा से ज्यादा डिजिटाइज करना होगा। सबसे मुख्य बात यह कि कोई भी भाषा अपने शब्दकोश से जीवित रहती है। शब्द जन्म लेते हैं, फलते-फूलते हैं और फिर मर जाते है। इसलिए हिंदी शब्दकोश में नए-नए शब्द जुड़ते रहने चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य है कि इसे अधिक महत्व नहीं दिया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा शुरू किए गए "वर्धा शब्दकोश" उपक्रम को और बढ़ावा देकर नए शब्दों को प्रोत्साहन दिया जाएगा। 

मनुष्य नहीं, मशीनों का निर्माण हो रहा
मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर प्रो.शुक्ल ने कहा कि आज के दौर में समाज शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य से दूर होता नजर आ रहा है। ऐसा लग रहा है कि हम मानव-मशीनें तैयार कर रहे हैं, जो पश्चिमी देशों की सेवा के लिए है। शिक्षा से मानव निर्माण होता नजर नहीं आ रहा है। हम इसलिए भी पीछे हैं क्योंकि पश्चिमी देशों ने तमाम साहित्यों का अपनी भाषा में सफलतापूर्वक अनुवाद किया, हम नहीं कर सके, पर इसकी जरुरत है। अनुवाद की स्थिति देखें तो हमारे अनुवादक गूगल ट्रांसलेटर से अधिक आगे नहीं नजर आते, जबकि अनुवाद तो भाषा की अंतरआत्मा को समझ कर उसे उल्लेखित करने की कला है।

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