जनरल फंड से विदेश का दौरा नहीं कर सकेंगे प्रोफेसर , सीनेट तैयार नहीं
जनरल फंड से विदेश का दौरा नहीं कर सकेंगे प्रोफेसर , सीनेट तैयार नहीं
डिजिटल डेस्क, नागपुर। यूनिवर्सिटी के कैंपस के विविध विभागों में कार्यरत शिक्षकों ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से उनके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस, वर्कशॉप और अन्य एकेडमिक गतिविधियों का खर्च उठाने की मांग की है। शिक्षकों के अनुसार लाखों रुपए के खर्च वाले इस विदेशी दौरे का खर्च उठाने में वे उतने सक्षम नहीं हैं। यूनिवर्सिटी की सीनेट में शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य डॉ. ओमप्रकाश चिमणकर ने हाल ही में हुई बैठक में यह विषय उठाया। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस, वर्कशॉप, सिपोजियम में जाना होता है। रिसर्च पेपर प्रस्तुत करना होता है। इसका खर्च विश्वविद्यालय के जनरल फंड से उठाया जाना चाहिए, लेकिन उनके इस प्रस्ताव को सीनेट के सदस्यों ने समर्थन नहीं किया। यूनिवर्सिटी कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थ विनायक काणे ने भी इस पर सहमति नहीं दी। लिहाजा डॉ. चिमणकर को अपना यह प्रस्ताव वापस लेना पड़ा।
जनरल फंड विद्यार्थियों का
मुख्य मुद्दा यह उपस्थित हुआ कि विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के लिए यह योजना लागू की गई, तो फिर संलग्नित कॉलेज के प्रोफेसरों को भी इसका लाभ देना होगा। यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के प्रोफसरों के लिए अलग-अलग मापदंड नहीं अपनाए जा सकते। वहीं दूसरा मुद्दा यह कि यूनिवर्सिटी के जनरल फंड में विद्यार्थियों द्वारा विविध प्रकार के शुल्क से पैसा जमा होता है। यह कई बार विद्यार्थियों के हित से जुड़े फैसलों पर खर्च किया जाता है। इससे प्रोफसरों के दौरे के लिए फंड नहीं दिए जा सकते। सीनेट सदस्यों की असहमति के बाद डॉ. चिमणकर ने अपना प्रस्ताव पीछे ले लिया।
जरूरी है सेमिनार और वर्कशॉप
डॉ. चिमणकर ने सीनेट में मुद्दा उपस्थित किया कि यूजीसी और यूनिवर्सिटी के नियमों के अनुसार शिक्षकों को नियमित रिसर्च में लगे रहना होता है। उन्हें नियमित अंतराल के बाद रिसर्च पेपर प्रस्तुतिकरण, अहम कांफ्रेंस और वर्कशॉप में हिस्सा लेने जैसे कई काम करने होते हैं, लेकिन कई बार वहां आने-जाने, रजिस्ट्रेशन फीस भरने का खर्च बहुत ज्यादा होता है। अंतरराष्ट्रीय परिषद में हिस्सा लेने का खर्च तो लाखो में होता है। यूनिवर्सिटी के विभागों में पढ़ाने वाले कई प्रोफेसर इतने सक्षम नहीं होते कि इतना खर्च वहन कर सकें। ऐसे में विश्वविद्यालय के जनरल फंड से ऐसे शिक्षकों को मदद की जानी चाहिए, लेकिन उनके इस प्रस्ताव का विष्णु चांगदे और डॉ. आर. जी भोयर समेत अन्य सदस्यों ने विरोध किया।