शक्ति मिल गैंगरेप : सरकार की दलील हत्या और दुष्कर्म में तुलना न्यायसंगत नहीं    

शक्ति मिल गैंगरेप : सरकार की दलील हत्या और दुष्कर्म में तुलना न्यायसंगत नहीं    

Tejinder Singh
Update: 2019-02-28 13:46 GMT
शक्ति मिल गैंगरेप : सरकार की दलील हत्या और दुष्कर्म में तुलना न्यायसंगत नहीं    

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य सरकार ने शक्ति मिल सामुहिक दुष्कर्म मामले में दावा किया है कि दंड को लेकर हत्या व दुष्कर्म के अपराध के बीच तुलना करना बिल्कुल भी न्यायसंगत नहीं है। राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि दुष्कर्म के ऐसे अनेकों मामले सामने आए हैं, जब बलात्कार के बाद पीड़िता आत्महत्या कर लेती है। इस लिहाज से सिर्फ हत्या के मामले में ही नहीं दुष्कर्म के मामले में भी जीवन खत्म होता है। इसलिए सिर्फ हत्या के अपराध में ही फांसी की सजा के प्रावधान को तार्किक कहना उचित नहीं है। हाईकोर्ट में शक्ति मिल में महिला फोटोग्राफर के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले में फांसी की सजा पाए तीन आरोपियों की याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में तीनों ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376ई की वैधानिकता को चुनौती दी है। इस धारा के तहत दुष्कर्म के अपराध को दोहरानेवालों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। याचिका में आरोपियों ने इस धारा को मनमानी व भेदभावपूर्ण बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है। पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया था कि दुष्कर्म हत्या से बड़ा अपराध नहीं है। 

कोई गणित नहीं है दुष्कर्म का अपराध 

इस दलील पर राज्य के महाधिवक्ता श्री कुंभकोणी ने कहा कि दुष्कर्म का अपराध कोई गणित का सवाल नहीं है जिसके लिए एक तय फार्मूले के तहत सजा तय की जाए। यह समाज की चेतना को झकझोरने वाला अमानवीय अपराध है, जिसके लिए कड़े दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए। क्योंकि दुष्कर्म के बाद होने वाली मानसिक पीड़ा का इलाज कोई सर्जरी व दवा नहीं कर सकती है। प्रसंगवश राज्य के महाधिवक्ता ने मुंबई के केईएम अस्पताल की नर्स सानबाग के मामले का उदाहरण दिया जो दुष्कर्म के बाद तीन दशक तक बिस्तर पर पड़ी रही।

बलात्कार के मामले में दूसरे क्रमांक पर महाराष्ट्र

इसके अलावा उन्होंने दुष्कर्म की घटनाओं को लेकर नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के आकड़े भी पेश किए। कुंभकोणी ने कहा कि दुष्कर्म और हत्या के बीच तुलना करना सेब व चिज के बीच तुलना करने जैसा होगा। महाधिवक्ता ने न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे की खंडपीठ के सामने कहा कि किस अपराध के लिए क्या सजा होनी चाहिए यह तय करने का अधिकार विधायिका के पास रहने देना चाहिए। अदालत का इस मामले में दखल उचित नहीं है। इससे पहले एडीशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने खंडपीठ के सामने धारा 376ई के तहत तय किए गए सजा के स्वरुप को लेकर सफाई दी। इस मामले को लेकर शुक्रवार को भी हाईकोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी। 

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