शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह को शिकस्त देने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा

वीरांगना रानी दुर्गावती के आह्वान पर पहाड़ी पर विराजमान हुईं माँ शारदा शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह को शिकस्त देने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा

Bhaskar Hindi
Update: 2021-10-14 08:34 GMT
शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह को शिकस्त देने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा

डिजिटल डेस्क जबलपुर । दैहिक, दैविक और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए गोंडवाना साम्राज्य में भी देवी आराधना की परम्परा रही है। गोंड वंश की रानी दुर्गावती ने अपने साम्राज्य में अकाल पडऩे पर शारदा माता की प्रतिमा स्थापित कर उनका आह्वान किया। माँ अपनी बेटी के आग्रह को टाल न सकीं और इस तरह माँ की प्रतिमा के स्थापित होने के बाद साम्राज्य में बारिश का दौर शुरू हुआ। यही वजह है कि आराधना व भक्ति के साथ यह स्थान मनोकामना पूर्ण करने के लिए भी जाना जाता है। आज भी दूर-दूर से लोग अपनी मन्नत लेकर यहाँ आते हैं। माँ शारदा सभी की मनाकानाओं को पूरा करती हैं। 
मन को असीम शांति प्रदान करता है प्रकृति की गोद में बना स्थल
मालवा के मुगल बादशाह सुजात खान के पुत्र बाज बहादुर ने गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। इस युद्ध में रानी ने दुश्मन सेना के दाँत खट्टे कर दिए थे। बाज बहादुर को जान बचाकर भागना पड़ा। इस विजय के बाद रानी पूरी सेना के साथ माता के दरबार में पहुँचीं और उनके चरणों में ध्वजा अर्पित की, तभी से यह परम्परा बन गई। सावन माह के सोमवार और चैत्र व शारदीय नवरात्रि में यहाँ ध्वज अर्पित किए जाते हैं। यह स्थल मन को भी शांति प्रदान करता है।
 

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