नर्मदा में प्रदूषण से विलुप्त हो रही राज्य मछली महाशीर , कभी थी 30 प्रतिशत की आबादी

नर्मदा में प्रदूषण से विलुप्त हो रही राज्य मछली महाशीर , कभी थी 30 प्रतिशत की आबादी

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-14 09:17 GMT
नर्मदा में प्रदूषण से विलुप्त हो रही राज्य मछली महाशीर , कभी थी 30 प्रतिशत की आबादी

टाइगर ऑफ रिवर का मिला दर्जा - स्वच्छ जल में ही रह पाती हैं जिंदा, इससे पता चलता है कितनी प्रदूषित हैं माँ नर्मदा
डिजिटल डेस्क जबलपुर । कभी नर्मदा में राज्य मछली महाशीर की भरमार होती थी। अब महाशीर की संख्या नर्मदा में 30 प्रतिशत से भी कम हो गई है। इसकी वजह नर्मदा में बदस्तूर बढ़ता प्रदूषण है। महाशीर को  टाइगर ऑफ फ्रेश रिवर भी कहा जाता है। स्वच्छ प्रभावित जल में जीवित रहने और प्रजनन करने वाली महाशीर की आबादी नर्मदा में सन् 1950 में कुल मछलियों की 30 प्रतिशत थी जो अब घटकर मात्र 2 प्रतिशत रह गई है।
राज्य शासन ने इसे विलुप्त होने से बचाने के लिए ही 26 सितम्बर 2011 को राज्य मछली का दर्जा दिया है। प्रदेश में मछलियों की 215 प्रजातियाँ हैं। इनमें से 17 पर विलुप्ति का खतरा है। नर्मदा नदी के कुछ हिस्सों में प्रवाहित जल-धाराओं के कारण महाशीर बची है।  कुछ हिस्सों में कृत्रिम जल धाराओं से नदी के पानी को प्रवाहित कर महाशीर के संरक्षण पर भी काम चल रहा है। दूषित पानी में यह जिंदा नहीं रह पाती है। महाशीर मछली प्रवाहित स्वच्छ जल धाराओं में ही प्रजनन करती है। नर्मदा में लगातार होने वाला रेत खनन, बनने वाले बाँध भी महाशीर की संख्या घटने की एक वजह है। महाशीर मध्यप्रदेश के अलावा पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड की कुछ नदियों सहित एशिया में पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और थाइलैंड में भी बहुतायत में मिलती है।
हर छह माह में होता है प्रदूषण का आकलन
मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर छह माह में नर्मदा के प्रदूषण का आंकलन करता है। आकलन में माँ नर्मदा के जल को कई स्थानों पर ए  ग्रेड और बिना किसी उपचार के पीने योग्य बताया गया है। लेकिन उक्त जल में भी महाशीर का अस्तित्व नहीं बच पाया है।  यदि जल वाकई साफ होता तो महाशीर के अंडे पानी में जरूर नजर आते।

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