सुप्रीम कोर्ट ने पलटा नागपुर खंडपीठ का फैसला, त्वचा से त्वचा का संपर्क प्रासंगिक नहीं

पॉक्सो सुप्रीम कोर्ट ने पलटा नागपुर खंडपीठ का फैसला, त्वचा से त्वचा का संपर्क प्रासंगिक नहीं

Tejinder Singh
Update: 2021-11-19 10:05 GMT
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा नागपुर खंडपीठ का फैसला, त्वचा से त्वचा का संपर्क प्रासंगिक नहीं

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ के उस विवादास्पद फैसले को पलट दिया है, जिसमें कहा गया था कि त्वचा से त्वचा का संपर्क और बच्ची के शरीर को उसके कपड़े हटाए बिना छूना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन हमला नहीं माना जा सकता। जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ भारत के महान्यायवादी, राष्ट्रीय महिला आयोग और महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर अपीलों में यह फैसला सुनाया है। पीठ ने माना की पॉक्सो के तहत यौन हमले के अपराध का महत्वपूर्ण तत्व यौन मंशा से किया गया हो और ऐसी घटनाओं में त्वचा से त्वचा का संपर्क प्रासंगिक नहीं है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए त्वचा से त्वचा के संपर्क सीमित करना न केवल एक संकीर्ण होगा, बल्कि प्रावधान की बेतुकी व्याख्या भी होगी। इसलिए यौन इरादे से बच्चों के किसी भी यौन अंग को छूने के किसी भी कार्य को पॉक्सो अधिनियम 7 के दायरे से दूर नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को पढते हुए कहा कि पॉक्सो की धारा 7 के तहत स्पर्श या शारीरिक संपर्क को सीमित करना बेतुका है और अधिनियम के इरादे को नष्ट कर देगा, जो बच्चों को यौन अपराधों सरे बचाने के लिए बनाया गया है। यदि इस तरह की व्याख्या को अपनाया जाता है तो कोई व्यक्ति जो शारीरिक रुप से टटोलते समय दस्ताने या किसी अन्य समान सामग्री का उपयोग करता है, उसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा। नियम का निर्माण शासन को नष्ट करने के बजाय उसे प्रभाव में लाना चाहिए। विधायिका की मंशा को तब तक प्रभावी नहीं किया जा सकता जब तक कि व्यापक व्याख्या न दी जाए। कानून का उद्देश अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है।

जस्टिस एस रवींद्र भट ने एक अलग लेकिन सहमतिपूर्ण निर्णय लिखा, ने कहा कि उच्च न्यायालय के विचार ने एक बच्चे के प्रति अस्वीकार्य व्यवहार को वैध बनाया। उच्च न्यायालय का तर्क असंवैदनशील रुप से तुच्छ है जो बच्चों की गरिमा को कम करता है। उच्च न्यायालय ने इस तरह के निष्कर्ष पर आने में गलती की है।

गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने जनवरी 2021 को अपने फैसले में एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग लड़की के स्तनों को उसके कपड़ों से ऊपर से टटोलना आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ होगा, लेकिन यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) की धारा 8 के तहत यौन उत्पीड़न का गंभीर अपराध नहीं होगा। उपरोक्त मामले के साथ सुप्रीम कोर्ट नागपुर खंडपीठ के एक और विवादास्पद फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर अपील पर भी विचार कर रहा है, जिसमें कहा गया था कि एक नाबालिग लड़की का हाथ पकडने और पैंट की जिप खोलने का कृत्य यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत यौन हमले की परिभाषा के अंत र्गत नहीं आता। दोनों फैसले नागपुर खंडपीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने सुनाए थे।

Tags:    

Similar News