हर काम के लिए ले रहे इंटरनेट का सहारा, साइबरकांड्रिया घातक

हर काम के लिए ले रहे इंटरनेट का सहारा, साइबरकांड्रिया घातक

Anita Peddulwar
Update: 2019-06-24 06:02 GMT
हर काम के लिए ले रहे इंटरनेट का सहारा, साइबरकांड्रिया घातक

डिजिटल डेस्क,नागपुर। आज के दौर में युवा सबसे ज्यादा समय मोबाइल पर इंटरनेट पर बिताते हैं। कोई बीमारी हो न हो, तुरंत उससे जुड़े लक्षण इंटरनेट पर सर्च करने लगते हैं और उपलब्ध जानकारी के अनुसार भ्रम में चले जाते हैं। बीमारी है या नहीं, इसकी पुष्टि में लग जाते हैं। यह काफी खतरनाक है। इस मानसिक दशा में को साइबरकांड्रिया कहते हैं। यह जानकारी साइकेट्रिस्ट डॉ. सुधीर भावे ने विदर्भ साइकेट्रिस्ट एसोसिएशन (वीपीए) के स्थापना दिवस कार्यक्रम के दाैरान कही। वीपीए द्वारा दो दिवसीय स्थापना दिवस का आयोजन किया गया। देश भर के प्रख्यात साइकेट्रिस्ट ने अलग-अलग विषयों पर लेक्चर दिया। वीपीए के नए सत्र के लिए नई टीम भी गठित की गई। नई टीम का नेतृत्व साइकेट्री विभागाध्यक्ष डॉ. विवेक किरपेकर करेंगे। इसमें उपाध्यक्ष डॉ. आनंद कुमार धूत, कोषाध्यक्ष के रूप में भंडारा के डॉ. रत्नाकर बांडेबुचे को नियुक्त किया गया है

सलाइवा जांच से दवा का असर पता लगेगा

कार्यक्रम में मनोरोग से जुड़े अलग-अलग विषयों पर वक्ताओं ने जानकारी दी। कोलकाता के डॉ. भास्कर मुखर्जी ने कहा कि आज मनोरोगियों को हम जो दवाई देते हैं, वही 90 प्रतिशत दवाई अन्य मरीजों को देने वाली होती है। कई बार दवाईयां मरीज को असर करती है और कई बार रिएक्शन करती हैं। हम यह जान नहीं सकते कि मरीज पर कौन सी दवा असर करेगी। इसके लिए एक केस स्टडी हुई, जिसमें मरीज के सलाइवा की जांच होने की संभावना ज्यादा हुई कि मरीज को कौनसी दवाई असर करेगी। यह टेक्नालॉजी भारत में मौजूद है।

जागरूकता जरूरी 

गड़चिरोली की साइकेट्रिस्ट डॉ  आरती बंग ने आदिवासियों पर केस स्टडी किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि आदिवासी क्षेत्र में रहने वाले लोगों में भी मनाेरोगी हैं, लेकिन वह लोग डॉ. के पास जाने के बजाय झाड़-फूंक करवाते हैं और उसमें बहुत समय बर्बाद हो जाता है। इसके बाद बीमारी का इलाज करना मुश्किल होेता जाता है। हमें इन क्षेत्रों में भी जागरूकता फैलाने आवश्यकता है।

मल्टीटास्किंग गंभीर

अकोला के डॉ. श्रेयस पेंढरकर ने बताया कि हमें अपनी वर्क लाइफ कैसे बैलेंस रखनी है, इसके लिए सबसे पहले मल्टीटास्किंग कार्य करने का अादत को छोड़ना होगा। हम एक ही समय में कई कार्य एक साथ करते हैं। कार चलाते हुए मोबाइल का उपयोग करना, जॉब के साथ अन्य कार्य करना आदि-आदि। मल्टीटास्किंग कार्य करने से मस्तिष्क पर जोर पड़ता है और हम मस्तिष्क को भी पूरी तरह आराम नहीं दे पाते। इससे स्ट्रेस बढ़ता है। साथ ही व्यायाम भी आवश्यक है। दैनिक व्यायाम करने वाला व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से ज्यादा जीता है। उसमें निर्णय लेने की क्षमता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता भी अधिक होती है।

बच्चे एडिक्टेड

डॉ. निखिल पांडे ने कहा कि आज कल बच्चे नई-नई चीजों के प्रति एडिक्टेड हो रहे हैं। इसका कारण है बच्चों का सोशल यानि सामाजिक जीवन से दूर होना। आज कल बच्चे किसी से बात नहीं करते, लोगों से घुलमिल नहीं पाते, अकेले रहते हैं। ऐसे बच्चे मोमो, ब्लूव्हेल और पबजी जैसे गेम के साथ अन्य साधारण गेम्स के भी एडिक्टेड हो जाते हैं। यह बच्चे अपनी वर्चुअल लाइफ बना लेते हैं, जिसमें अलग नाम और पहचान होती है। इसमंे हर एक स्टेज काे पार करने पर आपको वर्चुअल ट्रॉफी और गोल्ड क्वाइन मिलते हैं। बच्चों को जो वास्तविक जीवन में नहीं मिल पाता, वह वर्चुअल जीवन में पाने की काेशिश करते हैं।

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