सभी का सुख चाहने वाला परमार्थी, जैसी भावना होगी वैसा ही होता है - सुवीरसागर

सभी का सुख चाहने वाला परमार्थी, जैसी भावना होगी वैसा ही होता है - सुवीरसागर

Anita Peddulwar
Update: 2019-10-17 06:55 GMT
सभी का सुख चाहने वाला परमार्थी, जैसी भावना होगी वैसा ही होता है - सुवीरसागर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जो सबके लिए सुख चाहता वह परमार्थी है। यह उद्गार आचार्य सुवीरसागर ने श्री चंद्रप्रभ दिगम्बर जैन मंदिर बाहुबलीनगर में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संसार का हर प्राणी सुखी बनना चहता है। विकारों से प्रेरित होने के कारण मूल लक्ष्य का घात हो रहा है। लक्ष्य की सिद्धि का मार्ग गुरु बताते रहते हैं। जो खुद सुखी होना चाहता है और इस कारण से  पड़ोसी दुःखी हो जाए वह स्वार्थी है। जो सभी सुखी हों ऐसी भावना भाता है, वह परमार्थी। भावना भव-नशीन होती है। वह कार्यकारी भी होती है। जैसी भावना होगी, वैसा कार्य होता है। 

भावना सच्ची है, तो वैसा ही हमारे साथ होगा। हम प्रेम से बोलेंगे तो दूसरे भी प्रेम से बोलेंगे। मुनि चलते-फिरते तीर्थ हैं। ढाई द्वीप में जहां-जहां भी मुनि आर्यिका हैं, उनका आहार निरंतराय हो। इस संसार में कोई भी भूखा न रहे। ऐसी भावना भोजन के पहले भाना चाहिए। हम जैन हैं, अच्छी गति से आए हैं, तभी तो मानव बने। मोक्ष में जाना है। जिनेंद्र भगवान को मानने से कल्याण होने वाला नहीं है। जो उनकी मानता है वह जैन है। जैन के 3 मुख्य लक्षण हैं। रात्रि भोजन का त्याग, पानी छानकर पीना और जिनेंद्र भगवान का प्रतिदिन अभिषेक, शांतिधारा, पूजन, आरती और विसर्जन करना। इन तीनों का जो पालन करता है, वह जैन कहलाता है। जहां धर्म नहीं है, वहां धन नहीं टिकता। भोग में चला जाता है। साथ में कुछ नही आता। जो धर्म-पुण्य किया है, वही साथ आता है। धन धर्म के लिए लगाना चाहिए। शांति भी धर्म से ही मिलती है। 

रात्रि भोजन से जीव हिंसा का पाप 

सबसे पहले रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए। स्वयं भी रात में भोजन न करें और न ही किसी को कराएं। ऐसा करने से जीव हिंसा का पाप नहीं लगता। अहिंसा धर्म का पालन होगा। देवदर्शन में 6 अंग है उसका पालन करे। श्रावक के जो षट्वश्यक है उसका पालन करें। भगवान महावीर त्याग तपस्या के चलते निर्वाण हो  भगवान बन गए। इस पर्व के दिन भी हम धड़ल्ले से रात्रि भोजन करते हैं। कोई भी कार्यक्रम में रात्रि भोेज न रखें। यह मां जिनवाणी की नजर में निंदनीय व पाप है। अभी जैन धर्म का पालन नहीं करोगे, तो आगे जैन धर्म नहीं मिलेगा। दीप प्रज्वलन राजेंद्र बंड, सुधीर सावलकर, निलेश घ्यार, दीपक दर्यापुरकर, मधुकर मखे, उपमंत्री दिनेश जैन, हीराचंद मिश्रीकोटकर ने किया। चरण प्रक्षाल  राजेश बोबड़े परिवार एवं राजेंद्र बंड परिवार ने किया। जिनवाणी भेंट महिला मंडल ने की। मंगलाचरण भूपाल सावलकर ने गाया। संचालन पंडित उदय मोहल ने किया। आचार्यश्री की आहारचर्या दीपक दर्यापुरकर के यहां हुई। प्रमुखता से  मधुकरराव मखे, पंकज सावलकर, नरेंद्र तुपकर, चंद्रकांत बंड, सुरेश वरुडकर, मनीष विटालकर, चातुर्मास कमेटी के कार्याध्यक्ष सतीष पेंढारी जैन, दिलीप शिवणकर, सुरेश महात्मे, शरद मचाले, प्रदीप काटोलकर, गिरीश हनुमंते, मिलिंद सवाने, विक्रांत सावलकर, अरुणराव इन्दाने, बाला विटालकर, रवींद्र जैन, महेंद्र येलवटकर, मनीष विटालकर, मंगेश सावलकर, नितीन सावलकर, राहुल विटालकर, आशीष मोपकर, अनिल शहाकार, तेजस दर्यापुरकर, जयंत सोईतकर, राजेंद्र गडेकर, प्रकाश पलसापुरे, नीलेश महात्मे, पवन जैन, सुशांत जैन, ज्योति दर्यापुरकर, मंगला भुसारी, पुष्पा सावलकर, ममता  सावलकर, क्षमा जैन, शीतल विटालकर, कुसुमबाई गवारे, स्नेहा सावरकर उपस्थित थे। 
 

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