ये दो बहनें नौकरी छोड़ आर्गेनिक खेती से चमका रहीं किस्मत

ये दो बहनें नौकरी छोड़ आर्गेनिक खेती से चमका रहीं किस्मत

Anita Peddulwar
Update: 2018-04-07 08:44 GMT
ये दो बहनें नौकरी छोड़ आर्गेनिक खेती से चमका रहीं किस्मत

वंदना सोनी , नागपुर। किसानों के बच्चे गांव में खेती-बाड़ी छोड़कर शहर में रहना पसंद कर रहे हैं, खेती में नुकसान होने के कारण किसान भी आत्महत्या जैसे घातक कदम उठा रहे हैं वहीं शहर में रहने के बावजूद  युवा वर्ग आईटी जैसे प्रतिष्ठानों से नौकरी छोड़ कर खेती की ओर कदम बढ़ा रहा है। जो एक मिसाल है।  कुछ ऐसी ही कहानी नागपुर की दो बहनों की है, जिन्होंने आर्गेनिक खेती का संकल्प लिया है।  नाम  कीर्ति मंगरूलकर और प्राची माहूरकर है। एग्रीकल्चर की पढ़ाई करने के बाद असिस्टेंट प्रोफेसर कीर्ति ने और आईटी कंपनी पुणे में नौकरी करने वाली प्राची ने नौकरी छोड़ दी और गांव में आर्गेनिक खेती करने का निर्णय लिया। दोनों आज अच्छा पैसा कमा रही हैं। प्राची का कहना है कि  आज के समय में खेती-बाड़ी करने के तौर-तरीके बदल गए हैं। अब लोग नौकरी छोड़ कर खेती की तरफ रुख कर रहे हैं। कीर्ति ने भी कुछ साल पहले नौकरी छोड़ कर अपने गांव में आर्गेनिक खेती शुरू कर दी है।

बीजोत्सव सेमिली प्रेरणा
आज का युवा खेती छोड़ कर शहर में नौकरी करना सम्मान की बात समझता है। लेकिन इन दोनों बहनों ने इसे झूठा साबित करते हुए कृषि को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। कीर्ति और प्राची काटोल के पास मरूरकर गांव में आर्गेनिक खेती कर रही हैं। कीर्ति ने सिटी प्रीमियर कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर से अपने कैरियर की शुरुआत की। उन्होंने बीजोत्सव से प्रेरणा लेकर अपनी नौकरी छोड़ दी और खेती को अपना पेशा बना लिया। कीर्ति कहती हैं कि उन्हें बीजोत्सव से प्रेरणा मिली। इसके लिए उन्होंने फॉर्मिंग की जानकारी ली। वे कहती हैं कि हमें खेती करते हुए चार वर्ष हो गए हैं। हम देसी बीजों का इस्तेमाल करते हैं। हम लोग उड़द, मूंग, कपास और धान भी उगाते हैं। र्कीति बताती हैं कि पहले तो हमें सफलता नहीं मिली लेकिन बाद में धीरे-धीरे हम सफल होने लगे। प्रकृति जब 1 का सौ गुना देती है, तो बहुत खुशी होती है। वे आर्गेनिक खेती के बारे में कहती हैं कि आर्गेनिक विषमुक्त अनाज को बढ़ावा देना मुख्य काम है।

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