लक्ष्य सिद्ध करने के लिए मन में आतुरता होनी चाहिए - पं. आशीष मिश्र
लक्ष्य सिद्ध करने के लिए मन में आतुरता होनी चाहिए - पं. आशीष मिश्र
डिजिटल डेस्क, नागपुर। पोद्दारेश्वर राम मंदिर में आयोजित वार्षिक श्रीराम कथा में वाराणसी से पधारे युवा रामायणी पं. आशीष मिश्र ने 6वें दिवस उत्तरकांड के आधार पर कागभुसुंडी और गरुड़ संवाद में प्रभु रामचंद्र के अतुलनीय प्रभाव और स्वभाव की व्याख्या की। काग को पक्षियों में चोडासं कहा गया है। उसका रंग:रूप और वाणी अच्छी नहीं होती। इसके बावजूद भगवान ने कागभुसुंडी पर कृपा की। वे कहते हैं- प्रभाव देखा जाता है व स्वभाव सुना जाता हैं। परशुराम में आवेश, मोह और क्रोध है, जो रामभक्ति में बाधक है। जब उन्होंने राम के पद पर भृगुजी का चरणचिह्न देखा, तो समझ गए अवतार हो गया। सो भगवान का सारंग धनु प्रभु की ओर बढ़ाया कि इसे भी चढ़ाएं तो विश्वास हो जाए कि अवतार हो गया है।
श्रीराम ने सारंग पर बाण चढ़ाकर पूछा कि क्या काटें आपका मार्ग, आपका स्थान या आपकी तपस्या। परशुराम ने कहा- मेरी तपस्या काट दीजिए, फिर कर लूंगा। राह या स्थान काट देंगे तो चलूंगा कहां? भगवान ने उनकी तपस्या काट दी। यहां भगवान का प्रभाव और स्वभाव दोनों दिखते हैं। जब संत की बात समझ न आए, तो फिर भगवंत ही कुछ कर सकते हैं। परशुराम ने कहा कि मुझसे बहुत गलतियां हुई हैं। आप क्षमाशील हैं। भक्त तरह तरह के होते हैं, पर लक्ष्य सबका एक है। भगवान ने जगत जननी को प्रयागराज के चरणों में झुका दिया था, यह राम का प्रभाव है। सुतीक्ष्ण को जब पता चला राम आ रहे हैं, वह प्रेम से बावरे से हो उठे थे। लक्ष्य सिद्ध करने के लिए मन में आतुरता होनी चाहिए।
जो सिद्ध हैं वह शुद्ध है, पर वह अपने को अशुद्ध मानता है। सुतीक्ष्ण भी अपने में जमाने भर के दोष देखते हैं, पर यह सोच शांत हो जाते हैं कि भगवान अपने भक्तों के दोष नहीं देखते। यहां भगवान के स्वभाव के दर्शन होते हैं। सुतीक्ष्ण ध्यान में चले गए, वन से लौटने के बाद राम ने भरत की उलझी जटाएं अपने हाथ से सुलझाई। यदि तीन बार प्रयत्न करने पर कार्य न हो तो हरि इच्छा समझ छोड़ दो, हो जाए तो समझो हरिकृपा। वृंदावन में वबखंडी बाबा की जटा कन्हैया ने खुद जाकर वृक्ष से छुड़ाई थीं। भगवान ने सुतीक्ष्ण के हृदय में चतुर्भुज रूप में प्रवेश किया तो सुतीक्ष्ण अकुला उठे। नेत्र खुले तो सीता, राम और लक्ष्मण को देखा। वे उन्हें अगस्त्य के यहां लेकर गए। राम ही थे जो सुतीक्ष्ण की दक्षिणा बन अगस्त्य से मिले। पं. आशुतोष मिश्र ने मधुर भजनों से श्रोताओं को भक्तिसागर में डुबो दिया। विद्वान वक्ताओं का स्वागत श्रीनिवास कानोडिया, अरविंद मांडवेकर, हरीश मंत्री, भंवरलाल सारडा एवं निहाल गिरि ने किया। यह जानकारी प्रबंधक ट्रस्टी रामकृष्ण पोद्दार ने दी।