ट्रेंड बदला, सिमटता गया व्यवसाय

 ट्रेंड बदला, सिमटता गया व्यवसाय

Anita Peddulwar
Update: 2019-04-15 10:25 GMT
 ट्रेंड बदला, सिमटता गया व्यवसाय

डिजिटल डेस्क, नागपुर। लगभग डेढ़ दशक पूर्व तक मिट्टी से घड़े, मटके, सुराही, चीलम, दीपक, करवा, बर्तन, खिलौने आदि जरूरत के सामान बनाने वाले कुम्हारों का काम वर्षभर चला करता था, लेकिन जब से ट्रेंड बदला है। बाजार में विभिन्न प्रकार के विभिन्न आकर्षक डिजाइनों के बर्तन आ गए हैं, तब से कुम्हारों का  व्यवसाय  सिमट सा गया है। अब तो यह काम केवल त्योहारों पर ही चलता है। जिसमें उन्हें ठीक ठाक मजदूरी भी नहीं मिल पाती है। दीये का स्थान मोमबत्ती, मटके का स्टील के बर्तन, कुल्हड़ की जगह गिलास ने ले ली है। अब मिट्टी के स्रोत भी काफी कम हो गए हैं। इन समस्याओं के बीच कुम्हार समाज उपेक्षा का शिकार हो गया है।

मिट्‌टी व अन्य सामाग्री मिलना मुश्किल 
किसी समय में कुम्हार समाज बंधुओं को व्यवसाय के लिए शासन द्वारा नि:शुल्क मिट्‌टी उपलब्ध करवाई जाती थी पर अब ऐसा नहीं होता है। मिट्‌टी के बर्तन व अन्य वस्तुएं बनाने के लिए लगने वाली उत्कृष्ट दर्जे की चिकनी मिट्टी, लकड़ी व अन्य सामग्री अच्छे-खासे रुपए देने पर भी नहीं मिलती है। 500 ब्रास यानि लगभग एक ट्रक मिट्टी की कीमत 25 से 30 हजार रुपए तक जा पहुंची है। यह मिट्टी कुम्हारों को एक बार ही नि:शुल्क मिलती है, किंतु ट्रांसपोर्ट आदि के खर्च, फिर इससे विभिन्न प्रकार के सामान बनाना, उन्हें रंगना व अन्य खर्च के चलते सामान की लागत बढ़ जाती है। इसका सीधा असर व्यवसाय पर पड़ता है।  

विकास के लिए आगे आया प्रशासन 
कुम्हार समाज को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए गत 8 मार्च 2019 को संत शिरोमणि गोरोबा काका कुम्हार मातीकला बोर्ड की स्थापना की गई। इस बोर्ड का मुख्यालय विदर्भ के वर्धा शहर में होने की जानकारी महाराष्ट्र सरकार ने दी। इस बोर्ड में समाज के कारीगरों के उद्योग को स्थायित्व देना स्वरोजगार के लिए आर्थिक सहायता देना, उन्हें आधुनिक तकनीक से जोड़कर कौशल बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना, उनके द्वारा निर्मित कलाकृतियों को बाजार उपलब्ध करवाना,  कारीगरों से संपर्क कर उन्हें सामाजिक सामर्थ्य देना आदि कार्य किए जाएंगे। इसके लिए राज्य सरकार ने 10 करोड़ रुपए की राशि का बजट में प्रावधान किया है। सरकार ने कुंभार जाति को ओबीसी से एनटी में लाने का भी वचन दिया है। इस संबंध में जीआर जारी नहीं हुआ है।
- संजय गाते, अध्यक्ष, महाराष्ट्र कुंभार महासंघ 

यह हैं समस्याएं
-शहर में मिट्‌टी नहीं मिलती है। बाहर से बालू मंगवाना महंगा है।
-निर्माण कार्य के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।
-सरकारी उदासीनता के चलते सामान खरीदना है महंगा 
-पानी, बिजली, जलाऊ लकड़ी आदि महंगे हैं। सरकार द्वारा किफायती दामों में नहीं कराए जाते उपलब्ध।
- भट्‌ठी लगाने के लिए जगह नहीं है। इसके लिए आर्थिक मदद कहां से लाएं? आदि समस्याएं हैं।

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