पाठ्यक्रम में बदलाव से अनभिज्ञ हैं कुलगुरु, कहा- मुझे कुछ नहीं मालूम

पाठ्यक्रम में बदलाव से अनभिज्ञ हैं कुलगुरु, कहा- मुझे कुछ नहीं मालूम

Anita Peddulwar
Update: 2019-12-18 06:04 GMT
पाठ्यक्रम में बदलाव से अनभिज्ञ हैं कुलगुरु, कहा- मुझे कुछ नहीं मालूम

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के बीए के पाठ्यक्रम में विनायक दामोदर सावकर की जीवनी ‘माझी जन्मठेप’ शामिल करने करने को लेकर मुद्दा गर्म हो गया है। पूर्व में ‘आरएसएस का राष्ट्र निर्माण में योगदान’ अध्याय जोड़ने पर भी यूनिवर्सिटी में खासा विवाद हुआ था। मामले को तूल पकड़ता देख कर  यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने मामले में "सेफ साइड" चुनते हुए चुप्पी साध ली है।

यूनिवर्सिटी कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थविनायक काणे से जब इस मामले में प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने स्वयं को मामले से पूरी तरह अनजान बताया। उन्होंने कहा कि बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठक में क्या प्रस्ताव आया, पाठ्यकम में क्या बदलाव हो रहे हैं, उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है। न ही किसी ने पाठ्यक्रम में बदलाव की बात बताई।  दरअसल, राज्य में विधानमंडल सत्र चल रहा है। राज्यपाल से लेकर, मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री शहर में हैं। 19 को विवि के कार्यक्रम में ये सभी अतिथियों में शामिल हैं। वही विधानमंडल में भी सावरकर को लेकर मुद्दा गर्म है। ऐसे में डॉ. काणे इस बार चुप्पी साधे बैठे हैं। 

43 वर्ष पहले शामिल किया था
16 दिसंबर की बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठक में लाखनी के समर्थ महाविद्यालय के प्राचार्य और मराठी बोर्ड ऑफ स्टडीज के सदस्य डॉ. संजय पोहरकर ने प्रस्ताव रखा था, जिसमें उन्होंने बीए प्रथम सेमिस्टर के मराठी साहित्य विषय में सावरकर की ‘माझी जन्मठेप’ (मेरी उम्रकैद) अध्याय शामिल करने का प्रस्ताव रखा। डॉ. पोहरकर ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा कि, इस विषय पर विरोध पूरी तरह निरर्थक है। सावरकर स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही एक बड़े साहित्यकार भी थे। उनकी किताब को वर्ष 1986-87 के पाठ्यक्रम में एम.ए. के पाठ्यकम में भी शामिल किया गया था।

मैंने खुद सावरकर पर पीएचडी की है और उनका साहित्य के प्रति योगदान से वाकिफ हूं। पाठ्यक्रम में ‘माझी जन्मठेप’ शामिल करना कुछ भी गलत नहीं है। बोर्ड ऑफ स्टडीज के ही अन्य सदस्य डॉ. राजेंद्र नार्ठकवाडे ने कहा कि, पाठ्यक्रम को अपडेट करना एक सामान्य प्रक्रिया है। उसमंे विवाद जैसा कोई विषय ही नहीं है। बैठक मंे भी किसी ने विरोध नहीं किया। इसके पहले करीब 8 से 10 वर्ष पहले  एम.ए. मराठी में विशेष ग्रंथाकार के रूप में सावरकर पढ़ाए जाते रहे हैं। उनका साहित्य जगत में खासा योगदान रहा है। उनकी जीवनी को पाठ्यक्रम में शामिल करना विवाद का विषय हो ही नहीं सकता है।

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