शहडोल: आदिवासी बैगा परिवारों की अनूठी होली, सात अविवाहित युवा सेमर की टहनी काटकर करते हैं होलिका की स्थापना

  • आदिवासी बैगा परिवारों की अनूठी होली
  • सात अविवाहित युवा सेमर की टहनी काटकर करते हैं होलिका की स्थापना
  • होलिका दहन से पहले घर से अनाज ले जाकर करते हैं पूजा, चढ़ावे के बाद होता है होलिका दहन

Sanjana Namdev
Update: 2024-03-26 11:02 GMT

डिजिटल डेस्क, शहडोल। आदिवासी बहुल शहडोल के खम्हरियाकला के बैगा बहुल पचड़ी गांव में 50 से ज्यादा बैगा परिवार कई दशकों से होली की परंपरा को आज भी जीवंत रखे हुए हैं तो आने वाली पीढ़ी भी इनका अनुशरण कर रही है। गांव में होली त्योहार से एक माह पहले माघी पूर्णिमा के दिन शाम को गांव के खेरवा (देव स्थान) पर पहले सेमर पेड़ की पूजा हल्दी की सात नग गांठ, सुपाड़ी, एक सिक्का और नारियल अगरबत्ती से करने के बाद टहनी काटने की अनुमति ली। फिर सात अविवाहित युवाओं ने एक साथ कुल्हाड़ी पकडक़र एक टहनी काटी। इस टहनी से होहिका की स्थापना कर प्रत्येक घर से पूरे माह पुरानी लकड़ी ले जाकर होलिका में डाले। आज इसी होलिका का दहन होगा।

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प्रत्येक घर से अनाज ले जाकर होलिका में चढ़ाते हैं:

होलिका दहन के दिन प्रत्येक घर से एक-एक मुठ्ठी अलग-अलग फसल की अनाज लेकर गांव के लोग उसी खेरवा पर एकत्रित होते हैं और होलिका के सात फेरे लगाकर पूजन कर होलिका में चढ़ाने के बाद दहन करते हैं। होलिका दहन के बाद अगले दिन भोर में राख को रंग अबीर गुलाल के साथ मिलाकर गांव के लोग पहले खेर माता, ठाकुर बाबा, बघेसुर बाबा में मान्यता अनुरूप रंग चढ़ाते हैं। इसके बाद उत्सव का प्रारंभ कर फाग गाते हैं।

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