छठ पूजा : डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य, सुबह उगते सूर्य की पूजा के साथ समाप्त होगा पर्व

छठ पूजा : डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य, सुबह उगते सूर्य की पूजा के साथ समाप्त होगा पर्व

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-25 02:57 GMT
छठ पूजा : डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य, सुबह उगते सूर्य की पूजा के साथ समाप्त होगा पर्व

डिजिटल डेस्क, पटना। छठ पर्व की धूम पूर्वी उत्तर और पूूर्वी भारत से लेकर देशभर में जगह-जगह दिखाई दे रही है। ये व्रत-पूजा अत्यंत ही कठिन मानी गई है। मंगलवार नहाय खाय से शुरू इस पर्व का गुरुवार को तीसरा दिन था । इसे खरना  (Kharna) कहा जाता है। यह कार्तिक शुक्ल की पंचमी को मनाया जाता है। यह दिन बेहद जटिल माना जाता है। पूरे दिन उपवास के दौरान व्रती पानी की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करते। इसके अगले दिन गुरूवार काे व्रती डूबते सूर्य काे अर्घ्य दिया गया। शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाएगा। इसके साथ ही छठ पूजा व्रत पूरी तरह संपन्न हो जाएगा। पूर्वांचल से लेकर पूरे भारत में ये पर्व मनाया जा रहा है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पटनाा में पूजा के बाद कहा कि सूर्य पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है।

24 को लौकी की सब्जी और चावल खाकर ये व्रत शुरू हुआ। 25 को खरना में डूबते सूर्यदेव की पूजा की गई। 25 की मध्यरात्रि में पानी पीने के बाद निर्जला व्रत शुरू हुअा। 26 को ठेंकुआ, मूंगफली, शकरकंद, कद़दू आदि का भोग लगाया गया। मुख्य पूजा गुरुवार की शाम को डूबते सूर्य के साथ हुई और शुक्रवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। शुक्रवार को सूर्योदय के वक्त पूजा के बाद व्रत खुलेगा। 

साठी के चावल से बनती है गुड़ की खीर

इस दिन व्रती दिनभर के उपवास के बाद शाम को सूर्य को अर्घ्य देते हैं और प्रसाद के रूप में गुड़ की खीर या गन्ने का जूस बांटते हैं। इस व्रत में गन्ने का भी अत्यधिक महत्व है गुड़ की खीर के लिए भी विशेष तैयारियां की जाती हैं। महिलाएं एक साथ एकत्रित होती हैं और परंपरागत तरीके से चूल्हे की आग पर पूरी शुद्धता के साथ इसे पकाया जाता है। खीर के लिए साठी चावल का उपयोग किया जाता है। इस दौरान कई जगह महिलाएं गीत भी गाती हैं। व्रत रखने के लिए 36 घंटे का उपवास रखना होता है। व्रतधारी महिला को परवैतिन कहा जाता है। माथे पर लंबा सिंदूर अटल सुहाग की निशानी है।

नहीं होना चाहिए आवाज

इस दिन की एक और खास मान्यता है। शाम को पूजन, भोग व प्रसाद वितरण के बाद जब व्रती खुद प्रसाद ग्रहण करते हैं तो किसी भी तरह की आवाज नही होना चाहिए। यह पूरी तरह शांत और आवाज रहित माहौल में ग्रहण किया जाता है। यदि इस दौरान कोई भी आवाज आ जाए तो व्रती प्रसाद ग्रहण करना वहीं छोड़ देते हैं। और इसके बाद छठी मैया की पूजा पूर्ण हो जाने के बाद चाैथे व अंतिम दिन ही प्रसाद ग्रहण करते हैं।  

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