खास है श्रावण माह का हर सोमवार, जानें इस वर्ष क्यों है विशेष?

खास है श्रावण माह का हर सोमवार, जानें इस वर्ष क्यों है विशेष?

Manmohan Prajapati
Update: 2019-08-03 10:59 GMT
खास है श्रावण माह का हर सोमवार, जानें इस वर्ष क्यों है विशेष?

डिजिटल डेस्क। भारतीय संस्कृति मे त्रिदेवों की मान्यता है। ब्रम्हा विष्णु महेश, महेश यानि भगवान महादेव शीघ्रता से प्रसन्न होने वाले माने जाते हैं। इसीलिए उनका एक नाम आशुतोष है। भगवान शिव का पवित्र मास श्रावण प्रारंभ हो चुका है और इस बार श्रावण विशेष तौर पर फलदायी है। हर सोमवार को एक विशेष योग बन रहा है, इनमें से दो सोमवार निकल चुके हैं और आज तीसरा सोमवार है, साथ ही नागपंचमी का योग भी इस सोमवार को बना है।

विशेष प्रिय श्रावण मास
भगवान शिव को श्रावण मास विशेष प्रिय रहता ही है, क्योंकि मान्यता है कि इसी श्रावण मास में भगवान शिव अपने ससुराल पधारते हैं। साथ ही एक और आख्यायिका के अनुसार जब देवी सती ने देह त्याग किया और अगले जन्म में पार्वती बन कर आयी तब इसी श्रावण मास में कठोर तप कर भगवान शिव को पतिरूप में पाने का वरदान प्राप्त किया। इसी कारण इसी महीने में हर मंगलवार को मंगलागौरी व्रत भी रखा जाता है।

इसलिए आशुतोष नाम पड़ा
एक और कारण है, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला था तो भगवान आशुतोष ने इसी महीने में उस विष को अपने कंठ में धारण किया था इस कारण श्रावण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है। उत्तर भारतीय पध्दति के अनुसार 17 जुलाई से श्रावण मास प्रारंभ हुआ। श्रावण के सोमवार का विशेष महत्व होता हैं इस बार प्रथम सोमवार 22 जुलाई को आया, इसके बाद दूसरा सोमवार 29 जुलाई को था, इस दिन भगवान शिव को अति प्रिय तिथी प्रदोष था।

तीसरे सोमवार को नाग पंचमी
सावन माह का तीसरे सोमवार यानि 5 अगस्त को नागपंचमी है तथा इसके बाद चौथा और अंतिम सोमवार 12 अगस्त को फिर से सोम प्रदोष है। इस प्रकार इस वर्ष भगवान शिव की अति विशिष्ट कृपा रहने वाली है। भगवान शिव को अभिषेक प्रिय होता है, क्योंकि वे योगी हैं सतत तप में लीन होते हैं। विषपान भी किया हैं इस कारण उनमें उर्जा उष्मा गर्मी बहूत होती हैं इससे राहत के लिए जल की आवश्यकता होती है। इसी कारण अपने मस्तक में चंद्रमा और गंगाजी को धारण किए रहते हैं श्रावण मास में प्रतिदिन भगवान शिव को कम से कम जल अर्पित करें, विल्वपत्र चढ़ायें और ओम नमः शिवाय का जप करें जिससे वे समृध्दि और आरोग्य देगें।

साभार: पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला

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