आज से प्रारंभ हुई गुप्त नवरात्री, जानिए कैसे करें पूजा, क्या है महत्व?
आज से प्रारंभ हुई गुप्त नवरात्री, जानिए कैसे करें पूजा, क्या है महत्व?
डिजिटल डेस्क, भोपाल। देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए वर्ष के सबसे पवित्र और सिद्ध दिन नवरात्रि के माने गए हैं। देवी भागवत के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं। पहले चैत्र नवरात्रि, दूसरे आषाढ़ नवरात्रि, तीसरी शारदीय नवरात्रि और चौथी मार्गशीर्ष नवरात्रि। इनमें से पहली चैत्र और तीसरी शारदीय नवरात्रि के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं। लेकिन इन दो के अलावा जो नवरात्रियां होती हैं उन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस बार आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 13 जुलार्इ 2018 से लेकर 21 जुलार्इ 2018 तक आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि रहेगी। गुप्त नवरात्रि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और आसपास के इलाकों में खास तौर पर मनाई जाती है। इन नौ दिनों में मां भगवती के गुप्त स्वरूप काली, तारा, बगला, षोडशी, आदि की आराधना की जाएगी। इन दिनों में मां दुर्गा की आराधना गुप्त रूप से की जाएगी।
गुप्त नवरात्र पौराणिक कथा
गुप्त नवरात्र के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। कथा के अनुसार एक समय की बात है कि ऋषि श्रंगी एक बार अपने भक्तों को प्रवचन दे रहे थे कि भीड़ में से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि से बोली कि गुरुवर मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हूं लेकिन मेरे पति के पापाचारों से मां की कृपा नहीं हो पा रही मेरा मार्गदर्शन करें। तब ऋषि बोले वासंतिक और शारदीय नवरात्र में तो हर कोई पूजा करता है सभी इससे परिचित हैं। लेकिन इनके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र भी आते हैं इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। यदि तुम विधिवत ऐसा कर सको तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से परिपूर्ण होगा। ऋषि के प्रवचनों को सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में ऋषि के बताये अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की। स्त्री की श्रद्धा व भक्ति से मां प्रसन्न हुई और कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ। उसका घर खुशियों से भर गया।
क्या है गुप्त नवरात्र की पूजा विधि
जहां तक पूजा की विधि का सवाल है मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान भी पूजा अन्य नवरात्र की तरह ही करनी चाहिये। नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा को घटस्थापना कर प्रतिदिन सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा की जाती है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं के पूजन के साथ व्रत का उद्यापन किया जाता है। वहीं तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।
वर्ष 2018 में कब हैं गुप्त नवरात्र
वर्ष 2018 में आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक गुप्त नवरात्र के रूप में मनाये जायेगें। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार यह नवरात्र 13 से 21 जुलाई 2018 तक रहेंगें। नवरात्र पारण 21 जुलाई को नवमी-दशमी के दिन होगा। माघ मास में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र 5 फरवरी 2019 से शुरु होंगे व 14 फरवरी तक रहेंगें। नवरात्रि व्रत का पारण 14 फरवरी 2019 को होगा।
किस दिन किस रूप की पूजा?
आषाढ़ महीने यानी जून और जुलाई माह में पड़ने के कारण इन नवरात्रों को आषाढ़ नवरात्र कहा जाता है, हालांकि देश के अधिकतर भाग में गुप्त नवरात्रों के बारे में लोग नहीं जानते हैं। उत्तरी भारत जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब , हरयाणा, उत्तराखंड के आस पास के प्रदेशों में गुप्त नवरात्रों में मां भगवती की पूजा की जाती है। माँ भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा नवरात्रों के भिन्न – भिन्न दिन की जाती है।
13 जुलाई (शुक्रवार) ,2018 : घट स्थापन एवं माँ शैलपुत्री पूजा
14 जुलाई (शनिवार) 2018 : माँ ब्रह्मचारिणी पूजा
15 जुलाई (रविवार) 2018 : माँ चंद्रघंटा पूजा
16 जुलाई (सोमवार) 2018: माँ कुष्मांडा पूजा
17 जुलाई (मंगलवार) 2018 : माँ स्कंदमाता पूजा
18 जुलाई (बुधवार) 2018 : माँ कात्यायनी पूजा
19 जुलाई (बृहस्पतिवार) 2018: माँ कालरात्रि पूजा
20 जुलाई (शुक्रवार) 2018 : माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी
21 जुलाई (शनिवार ) 2018: माँ सिद्धिदात्री, नवरात्री पारण
दुर्गासप्तशती का करें पाठ
गृहस्थ साधक जो सांसारिक वस्तुएं, भोग-विलास के साधन, सुख-समृद्धि और निरोगी जीवन पाना चाहते हैं उन्हें इन नौ दिनों में दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए। यदि इतना समय न हों तो सप्तश्लोकी दुर्गा का प्रतिदिन पाठ करें। देवी को प्रसन्न करने के लिए और साधना की पूर्णता के लिए नौ दिनों में लोभ, क्रोध, मोह, काम-वासना से दूर रहते हुए केवल देवी का ध्यान करना चाहिए। कन्याओं को भोजन कराएं, उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र भेंट करें।