जानिए क्या है ॐ ? कैसे दूर करता है मानसिक और शारीरिक कष्ट

जानिए क्या है ॐ ? कैसे दूर करता है मानसिक और शारीरिक कष्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-12 03:26 GMT
जानिए क्या है ॐ ? कैसे दूर करता है मानसिक और शारीरिक कष्ट

 

डिजिटल डेस्क । ॐ शब्द शिव का प्रतीक है। यदि इसे शुभ मुहूर्त में उकेरकर प्राणप्रतिष्ठित किया जाए तो इसमें अतुल्य शक्ति होती है। इसे लॉकेट के रूप में धारण किया जा सकता है । प्राणप्रतिष्ठित ॐ में अदृश्य रोग निवारक शक्ति होती है। अतः रोगी के लिए ॐ का लॉकेट विशेष प्रभावी माना जाता है। जो लोग अपरिहार्य कारणों से विधिवत ॐ धारण नहीं कर सकते है, उन्हें किसी भी सोमवार को चांदी का ॐ का लॉकेट धारण कर लेना चाहिए।  ये लॉकेट रोग प्रतिरोधक क्षमता में अचानक वृद्धि करता है जिससे औषधि लाभ भी पर्याप्त प्रभावी होता है।

 

 

ॐ स्वयं एक मंत्र है ये आत्मा का संगीत। ओहम का ये चिन्ह "ॐ" अद्भुत है। ये संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। ये अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है। ॐ को ओहम कहा जाता है। उचारण करते समय "ओ" पर ज्यादा जोर होता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। ये ब्रह्मांड की अनहद ध्वनि है। अनहद अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं।

 

 

 

ये सम्पूर्ण ब्रह्मांड में स्वतः अनवरत जारी है। तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती की अनुभूति करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओहम। साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओहम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। 

 

 

 

 

फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना आवश्यक है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना। आइंसटाइन भी येी कह कर गए हैं कि ब्राह्मांड फैल रहा है। आइंसटाइन से पूर्व भगवान महावीर ने कहा था। महावीर से पूर्व वेदों में इसका उल्लेख मिलता है। महावीर ने वेदों को पढ़कर येीं कहा, उन्होंने तो ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर देखा तब कहा।

 

 

 

 

त्रिदेव और त्रेलोक का प्रतीक  

- ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, ह, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। ये ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और ये भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है।

 

- बीमारी दूर भगाएँ : तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के रूप पर कं, खं, गं, घं आदि। 

 

- इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

 

- उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ का उच्चारण जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ का उचारण जप माला से भी कर सकते हैं। 

 

 

 

 

इसके लाभ :- 

 

इससे शरीर और मन को एकाग्रता लाने में सहायता मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों का अनुभव करते हैं। 

 

अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से ह्रदय की धड़कन तेज हो जाती है जिस कारण से रक्त में "टॉक्सिक"(विष पदार्थ) पैदा होने लगते हैं। इसी प्रकार प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह मंगलकारी रसायन (अम्रत) की वर्षा करती है।

 

 

 

 

 

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