तिल संकष्टी चतुर्थी आज, 'गणपति' को प्रसन्न करने साल का श्रेष्ठ व्रत

तिल संकष्टी चतुर्थी आज, 'गणपति' को प्रसन्न करने साल का श्रेष्ठ व्रत

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-02 03:16 GMT

 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गणपति के हर व्रत, त्योहार का विशेष महत्व है। आम दिनों भी की गई बप्पा की पूजा शुभ फलों को प्रदान करती है। इस बार 2018 में माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत 5 जनवरी को पड़ रहा है। इसे तिल चौथ के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत धारण करने से जीवन के सभी कष्टों का निदान होता है। मनुष्य सत्कर्म के मार्ग पर चलता है और उसकी संतान को यश एवं मान-सम्मान प्राप्त होता है। साल के 12 माह के  क्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी जाती है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना करने से सौभाग्य और सुख की दृष्टि से अति उत्तम बताया गया है। 

 

पूजा विधि

-गणपति का पूजन करते वक्त अपना मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें। 
-गणपति की पीठ के दर्शन ना करें। 
-दुर्वा, पुष्प, रोली, फल सहित मोदक व पंचामृत को पूजन में शामिल करें। 
-गणपति को विधिवत स्नान करके उनका पूजन करें। 
-इस दिन तिल के लड्डू चढ़ाने का भी विशेष महत्व है। मोदक के साथ इन्हें भी पूजन में अर्पित करें। 
-पूजन के वक्त संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा अवश्य सुनें, एवं गणपति की आरती करें। 
-ॐ गणेशाय नम: अथवा ॐ गं गणपतये नम: मंत्र का जाप अतिशुभ बताया गया है।

 

 

पूजन मुहूर्त 

चतुर्थी तिथि आरम्भ-  4 जनवरी  21.30

चतुर्थी तिथि समाप्त- 5 जनवरी  19.0

 

पौराणिक कथा
इस व्रत को लेकर एक कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि सत्यवादी राजा हरिशचंद्र के राज में एक ब्राम्हण व उसकी पत्नी भी रहते थे। एक समय उनका एक पुत्र की प्राप्ति हुई और कुछ समय बाद वे मृत्यु को प्राप्त हो गए। ब्राम्हणी दुखी लेकिन पुत्र के जीवन को संवारना ही उसका लक्ष्य था। अतः व गणपति का चौथ का व्रत रखते हुए उसकी परवरिश करने लगी। एक दिन एक कुम्हार ने बच्चे की बलि अपनी कन्या के विवाह के उद्देश्य से धन के लिए दे दी। इसके बाद वह कष्टों में घिर गया जबकि बच्चा खेलता हुआ मिला। यह वृत्तांत जब राजा हरिशचंद्र को सुनाया गया तो वह उसने व्रत की महिमा बतायी। 

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