रविदास जयंती 2021: जानिए संत शिरोमणि रविदास जी के बारे में

रविदास जयंती 2021: जानिए संत शिरोमणि रविदास जी के बारे में

Manmohan Prajapati
Update: 2021-02-27 05:56 GMT
रविदास जयंती 2021: जानिए संत शिरोमणि रविदास जी के बारे में

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हमारा देश साधु-संतों और ऋषि-मुनियों की धरती है। यहां अनेक महान संतों ने जन्म लेकर भारतभूमि को धन्य किया है। इन्‍हीं में से एक नाम महान संत रविदास जी का है। संत रविदास बहुत ही सरल हृदय के थे और दुनिया का आडंबर छोड़कर हृदय की पवित्रता पर बल देते थे। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन ही रविदास जयंती मनाई जाती है। जो कि इस साल 27 फरवरी 2021 यानी शनिवार को मनाई जा रही है। 

संत रविदास ने देश में फैले ऊंच-नीच के भेदभाव और जाति-पात की बुराईयों को दूर करते हुए भक्ति भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बाधने का काम किया था। इन्हें संत रैदास और भगत रविदास जी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं इनके जन्म और जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें।

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दोहा और कहावत
मन चंगा तो कठौती में गंगा, यह वाक्य तो आपने सुना ही होगा। इस वाक्य को संत शिरोमणि रविदास जी के द्वारा कहा गया है। वे जात-पात के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने लिखा, "जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।"

इसलिए पड़ा ये नाम
हिंदू पंचांग के अनुसार, गुरु रविदास जी का जन्म माघ माह की पूर्णिमा तिथि को वर्ष 1398 में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ था उस दिन रविवार था। इसी के चलते इनका नाम रविदास पड़ा। 

कार्य ही ध्यान है :- 
संत कवि रविदास कबीरदास के गुरु भाई थे। गुरु भाई अर्थात् दोनों के गुरु स्वामी रामानंद जी थे। संत रविदास का जन्म लगभग 600 वर्ष पूर्व माघ पूर्णिमा के दिन काशी में हुआ था। मोची कुल में जन्म लेने के कारण जूते बनाना उनका पैतृक व्यवसाय था और इस व्यवसाय को ही उन्होंने ध्यान विधि बना डाला। कार्य कैसा भी हो, यदि आप उसे ही परमात्मा का ध्यान बना लें तो मोक्ष सरल हो जाता है। रविदासजी अपना काम पूरी निष्ठा और ध्यान से करते थे। इस कार्य में उन्हें इतना आनंद आता था कि वे मूल्य लिए बिना ही जूते लोगों को भेंट कर देते थे। 

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‘’मन चंगा तो कठौती में गंगा’’ 
संत रविदास जी से जब एक बार किसी ने गंगा स्नान करने को कहा तो उन्होंने कहा- कि नहीं, मुझे आज ही किसी को जूते बनाकर देना है। यदि नहीं दे पाया तो वचन भंग हो जाएगा। रविदास के इस तरह के उच्च आदर्श और उनकी वाणी, भक्ति एवं अलौकिक शक्तियों से प्रभावित होकर अनेक राजा-रानियों, साधुओं तथा विद्वज्जनों ने उनको सम्मान दिया है। वे मीरा बाई के गुरु भी थे।

उनकी इस साधुता को देखकर संत कबीर ने कहा था- कि साधु में रविदास संत हैं, सुपात्र ऋषि सो मानियां। रविदास राम और कृष्ण भक्त परंपरा के कवि और संत माने जाते हैं। उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं जिन पर कई धुनों में भजन भी बनाए गए हैं। जैसे, प्रभुजी तुम चंदन हम पानी- इस प्रसिद्ध भजन को सभी जानते हैं।

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