नवरात्रि का सातवां दिन: आज करें मां कालरात्रि की आराधना, स्मरण मात्र से होता है बुरी शक्तियों का नाश

नवरात्रि का सातवां दिन: आज करें मां कालरात्रि की आराधना, स्मरण मात्र से होता है बुरी शक्तियों का नाश

Manmohan Prajapati
Update: 2020-10-23 03:41 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित होता है, जो कि आज शुक्रवार को है। माता के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलने के साथ व्यक्ति के शत्रुओं का नाश भी हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इनका स्मरण मात्र से ही बुरी शक्तियां दूर चली जाती हैं। साथ ही कुंडली की ग्रह बाधाएं भी दूर होती है। मान्यता है कि मां कालरात्रि भक्तों को अभय वरदान देने के साथ ग्रह बाधाएं भी दूर करती हैं। 

इनकी पूजा-अर्चना करने से तेज बढ़ता है। ऐसा माना जाता है कि मां कालरात्रि की विधि-विधान से पूजा करने वाले भक्तों पर माता रानी अपनी कृपा बरसाती हैं। मां का यह स्वरूप विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। लेकिन इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। आइए जानते हैं मां दुर्गा के इस स्वरूप के बारे में...

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मां कालरात्रि के ये नाम भी
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम "शुभंकारी" भी है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा कई नामों से जाना जाता है। 

नकारात्मक ऊर्जा का नाश
इस दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से सभी राक्षस, भूत पिसाच और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं और अनेक आसुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।

स्वरूप
माता कालरात्रि के शरीर का रंग घनघोर काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में बिजली सी चमकने वाली माला है। ये त्रिनेत्रों वाली हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ(गधे) की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही कितना भी भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली देवी हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं। 

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पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले कलश की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए। फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत से तिलक कर पूजन करना चाहिए और मां काली का ध्यान कर वंदना श्लोक का उच्चारण करना चाहिए। मां को इस रूप में कई प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। विशेष रूप से मधु और महुआ के रस के साथ गुड़ का भोग होता है। पूजा के दौरान मां का स्त्रोत पाठ करना चाहिए। पाठ समापन के पश्चात माता जो गुड़ का भोग लगा लगाना चाहिए। तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए।

आराधना मंत्र:-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

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